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________________ (१३७) आ लोचनामां "तुं अने हुं अने दुं अने तुं” एवं समापत्ति रूप अनेद शान थाय . एए ___ उपर कहेला अर्थनी नावना करी स्तुति करे बे. किं ब्रह्मैकमयी किमुत्सवमयी श्रेयोमयी किं किमु, झानानंदमयी किमुन्नतिमयी किं सर्वशोजामयी। इत्यं किं किमितिप्रकल्पनपरैस्त्वन्मूर्तिरुद्दीक्षिता, किं सर्वातिगमेव दर्शयति सद्ध्यानप्रसादान्महः १०० अर्थ-शुं ते प्रतिमा ब्रह्ममय ! शुं ज्ञानानंद मय ! शु उन्नति मय वे ! वाशुं ते सर्व शोनामय ! आप्रमाणे कल्पना करता एवा कविओए जोयेली तमारी प्रतिमा सद्ध्यानना प्रसाद श्री सर्वने नवंघन करनार स्वप्रकाश ज्ञानरूप तेजने बतावे . १०० विशेषार्थ-शुं ते प्रतिमा ब्रह्ममय वे ! अर्थात् ब्रह्मनी साथे ऐक्यतावाली, अहिं स्वरूपोत्प्रेक्षा अलंकार . शुं ते प्रतिमा उत्सवमय ! शुं ते प्रतिमा ज्ञानानंदमय वे ! वा शुं ते उन्नति मय ! वा शुं ते सर्व शोनामय ! अहिं उत्सव विगेरे ब्रह्मना विवर्त्त स्वरूप जे. अहिं रुपोत्प्रेक्षा थाय नहीं तेथी क्रम दोष लागे नहीं. कारणके उत्प्रेक्षा वडे क्रम स्वतंत्र नथी. आप्रमाणे कट्पना करता एवा कविओए जोयेली तमारी प्रतिमा सध्यानना प्रसाद थी सर्वने जवंघन करनार स्वप्रकाश ज्ञान रूप तेजने बतावे . अहिं सद् ध्यान एटले निर्विकल्प कलानी प्राप्ति अथवा स्वतः सिघनाव जाणवो, तेमां जिज्ञासा नहीं एटले
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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