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________________ (१३६) कोइ रुपांतर स्फुरणायमान श्रतुं नथी अने तमारा रूपनुं स्मरण थतां पृथ्वीमां बीजा रूपनी प्रसिद्धि थती नथी. तेमाटे "तुं अने हुँ" एवी अनेद बुद्धिना उदयश्री युष्मत् अने अस्मत् पदनो जस्लेख थतो नथी अने तेथी अगोचर परम चैतन्यमय ज्योति स्फुरणायमान थाय जे. एए। विशेषार्थ-हे प्रनु, तमारू बिंब हृदयमां धारण करवाश्री प्रथ मज रूपांतर स्फुरित थतुं नथी, अर्थात् स्मरण कोटीमा आवतुंज नथी, कारणके तमारा बिंब आगल बीजु कांश स्मरणमार्गे आवतुंज नथी, अर्थात् तमारूं बिंब स्वनाविकरीते एवं रमणीय डे के जेथी बीजें कोई बिंब दृष्टिमार्गे आववा पामतुंज नथी. ते तमारा बिंबना आलंबननुं ध्यान कर्या पळी तमारा रूपनुं ध्यान कर्ये बते आ पृथ्वीने विष बीजा रूप मात्रनी प्रख्याति थती नथी, कारणके बीजां सर्व रूपो तेनाथी निकृष्ट ने अने तमाळं रूप सर्वोत्कृष्टपणे ध्यान करवा योग्य वे. ते तमारा रूपना. ध्यानश्री जव्य, गुण, पोयना सदृशपणावडे निश्चयश्री तमारा अने मारा अनेद बुधिना उदय श्री युष्मत् (तमे) अने अस्मत् (अमे) नापदनो उलेख न थाय, कारणके ध्याता, ध्यान अने ध्येय ए त्रणने एकत्वनी प्राप्ति थाय जे. तेथी करीने कां अगोचर एवं परब्रह्म चैतन्यमय ज्योति स्फुरे चे, तेना स्फुरणथी सर्व क्रियानुं साफट्य . लावार्थ एवो ने के ज्यारे लगवंतनुं बिंब हृदयमां धारण करवामां आवे त्यारे लगवंतना रूपनुं अनुस्मरण अने तेनुं ध्यानज पापने क्य करनारूं थाय अने तेथी निश्चय अव्य, गुण, पर्यायना साम्यनी
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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