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________________ अनुक्रमणिका५५ शुग्न लाववाला क्रिया करनारा श्रावकने अव्य स्तवमां . हिंसा लागती नथी एम युक्ति सहित समाधान.. ५३ जिन पूजामां श्रती हिंसा अनर्थ दंडरूप थाय के अर्थ दमरूप थाय ते संबंधमां करेलुं विस्तारवालुं समाधान. ५४ आनंदादि श्रावकोना दृष्टांतोथी कुमतिनी मूढता सूचवनारू व्याख्यान. ५५ लुपकोनामतनो उपसंहार करतां थकां जिनराजनी पूजा करनाराऊनी लव्यतानु वर्णन. ५६ तीर्थकर लगवतनी प्रतिमानुं पुजन केवु लालदायक ने तेनुं वर्णन. ५७ प्रतिमानी विधिपूर्वक प्रतिष्टा संबंधी धर्मसागरनो मत ____ अने ते बाबतमां करवामां आवेलुं समाधान. एए ५७ अन्य गबना चैत्यने नमस्कार करवो योग्य नथी एवा मतनी बाबतमां करवामां आवेलुं समाधान. १०३ एए प्रतिष्टाथी प्रतिमाने विषे परमात्मतत्वनी समापत्ति प्राप्त ___थतां तेनी लक्तिथी आत्माने श्रता लाननुं वर्णन. १०५ ६० पार्श्वस्थ धर्मसागरना मतनो उपसंहार. ६१ उपस्थित नक्तिथी प्रेरायेला अंत:करणथी ग्रंथकारे जगवंतनी प्रतिमानी करेली स्तुति. ६२ अव्य स्तव मिश्र अर्थात् धर्म अधर्म रूप ने एवा पाशचंग नामतनुं चारपदे विकटप वडे विनागकरी,करेलुं खंडन. ११२ ६३ अधर्म पद, धर्मपद अने धर्माधर्म पद-आत्रणपक्षमा गृहस्थने मिश्रपद कहेलो, ते बाबतमां सूत्रकृतांग १०॥
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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