SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३० ) ध्यानथी तेनुं शास्त्रोक्तपणुं बे. वली अमारा श्राचार्यो सुपात्रने विषे दानदनी जेम लौकिक पूजाने विशेषपणे पुण्यने अ कहे. सारांशके, कोई श्रावकने लोकोत्तर पूजा थाय ते लोकोत्तर फल पे, जेम सुपात्रमां पेलुं दान मोहने माटे थाय तेम. तेवीज रीते कोइ श्रावकने लौकिक पूजा पुण्यने थाय. जेमतेवी जातना दान दथी पुष्य थाय बे तेम. जेम खेड करवामां पलाल - घास विगेरे नियतपणे आनुषंगिक फलरूप, ते पुण्य बे ने बीजथीजे धान्यनी प्राप्ति जे मुख्य फल, ते परम निर्वाणरूप बे. श्रप्रमाणे सूत्रयी उपदेश करेल बे, तेथी दानादि पुण्यना मध्यमां कथन करेल बे, तत् पूजा पण धर्मनी मध्यमां थाय येवो परमार्थ बे. ए४ हिं शंका करे के, पूजा, दान, प्रवचननुं वात्सल्य विगेरे जे कृत्य बे ते सराग कृत्य कहेवाय ने तप चारित्र विगेरे कृत्य वीतराग कृत्य कहेवाय एम विवेचनथी विभाग जणायचे, तेमा जे पेहेलु सराग कृत्य ते पुण्यरूप बे ने बेलु वीतराग कृत्य ते धर्मरूप बे. तेथी धर्म पदार्थ बे प्रकारे थाय. ज्ञान योग लक्षण २ पुण्यलक्षण. प्रमाणे शास्त्रावार्ता समुच्चय नामना ग्रंथमां श्रीहरिजप्रसूरिए कहेलुं बे, तो तेनी पूर्वनी भूमिमां रहेला देव पूजादि कर्ममां धर्मपणुं वे ए वार्ता अमने केवी रीते रुचे ? तेना समाधानमां कहे बे. पुण्यं कर्म सरागमन्यडुदितं धर्माय शास्त्रेष्विति, श्रुत्वा शुद्धनयं न चात्र सुधियामेकांतधीर्युज्यते ।
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy