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________________ (१२५) जिनबिंब करावे, जिनपूजा करे अने जैनमतने आचरे, ते पुरुपने मनुष्य, देवता अने मोदना सुखरुप फल हस्तगत थाय वे. ए३ ___ हवे लोकोत्तर अने लौकिक पणाश्री जे धर्म, पुण्य रुप पणुंचे ते पूजामा ज स्वाय. ते कहे. या ज्ञानाद्युपकारिका विधियुता शुद्धोपयोगोज्वला, सा पूजा खलु धर्म एव गदिता लोकोत्तरत्वं श्रिता। श्राजस्यापि सुपात्रदानवदितस्त्वन्यादृशीं लौकिकी, माचार्या श्रपि दाननेदव दिमांजपति पुण्याय नाएट अर्थ-जे पूजा ज्ञानादिकने उपकार करनारी, विधियुक्त अने शुध उपयोग वडे उज्वल, ते पूजा लोकोत्तरपणाथी धर्म रूपज कहेली अने श्रावकने, सुपात्रमा आपेला दानजेदनी जेम, बीजी लौकिकी पूजा कहेली के जेने आपणा आचार्यो पुण्य रूप कहे. ए विशेषार्थ-जे जिनपूजा ज्ञानादिकनी पुष्टि करनारी, अर्ह आदि शब्दथी सम्यक्त्व विगेरे ग्रहण करवां, वलीजे पूजा विधिसहित अने जे शुद्ध उपयोगथी उज्वलने, अहिं उपयोग श्रेटले नवसागरमां नाविका समान अवीते पूजाने जोई, घणां पुरुषो प्रतिबोध पामी षट्काय जीवना रदको थाय श्रेवो अध्यवसाय ते वडे करी उज्वलजे, ते पूजा निश्चयपणे लावपूर्वक वा असंमोह पूर्वक बे के जे धर्मज कहेली कारणके ते लोकोत्तरपणाने आश्रित अयेली बे; तेमज एवा गुणना
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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