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________________ अनुक्रमणिका. ३२ दयाना परिणामवाला ने आज्ञा प्रमाणे वर्त्तनारा साधु ने हिंसामा अनुमोदना तथा अनुमति नथी ते संबंधे विस्तारथी वर्णन. ३३ मुनिने पूजा विगेरे केम करवा योग्य नथी ते बाबतनी शंकानं हेतु युक्ति सहित समाधान. १२ ४७ ४८ ३४ जावस्तव ने व्यस्तवनो संबंध ने जावस्तव साथे जव्य पूजानी अपेक्षा मुनिनेनथी ते बाबत समाधान. ५० ३५ मुनि ने श्रावकनी सामर्थ्यतानी तरतमता अने श्रावकने प्रव्यपूजानी आवश्यकतानो ऊपदेश. ३६ प्रव्यस्तवमां जेजे गुणोनो समावेश बे तेनुं वर्णन. ३७ नाव आपत्तिनो नाशकरवानी इछा राखनारो श्रावक जगवंतंनी पूजामां दूषित यतोनथी, ते बाबत युक्ति सहित समाधान. एउ ३० मुनिने नदी उतरवामां निर्दोष पणुं बे एम न्याय युक्त समाधान एए ५२ m ५३ ३५ जिन शासननी उन्नति करनार श्रावकने प्रव्य स्तवमां हिंसानो का अंश लागतो नथी ते बाबत हेतु दृष्टांत युक्त समाधान. ६० ४० श्री रीषदेव भगवाने करेली व्यवहारिक प्रवृत्ति अने ते संबंधमां तेमनी निर्दोषतानुं वर्णन. ६१ ४१ श्री महानिशीथ सूत्रमां गणधरोए श्रावकोने पुष्पादिथी जगवंतनी पूजा करवा संबंधे करेला उपदेशनो अधिकार. ६२
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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