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________________ (११५) जावार्थ-मोदना अर्थी एवा श्रावक जैन सिद्धांतमांथी सर्व तात्पर्य ग्रहण करी पोताना मनुष्य जन्मने सफल करवा वास्ते त्रण जगतना अधिपति श्रीतीर्थकर जगवंतना पूजनमां सर्व शंकानो त्याग करी दे; तेमज ते श्रावक शुद्ध मनवडे अव्यस्तवने विषे धर्म बुधि धारण करी ते नगरा पाशने तजीदे. जे पाश परमतवालाए था व्यस्तव मिश्र एटले धर्म अधर्मरूप ने एम कही मार्गने विषे लंबाव्यो बे. अहिं पाश शब्दश्री पाशचंजनो मत सूचव्यो. जे मत मुग्धजनरूप मृगोने पाशमां पाडवा जेवू काम करे . १ उपर जे धर्माधर्मरूप मिश्रपणुं कडं, तेने चार पदे विकल्पवडे विजाग करी खंडन करवानों आरंज करे जे. जावेन क्रियया तयोर्नतु तयोर्मिश्रत्ववादे चतुनंग्यां नादिम एकदाननिमतं येनोपयोगघ्यं । नावो धर्मगतः क्रियेतरगतेत्यल्पो द्वितीयः पुनर्जावादेव शुनात् क्रियागतरजो हेतु वरूपदयातूज्य अर्थ-१ धर्म गतनाव अधर्म गतनाव २ धर्म गतलाव अ. धर्मगत क्रिया ३ अधर्मगत नाव धर्मगत क्रिया अने ४ धर्मगत क्रिया अधर्मगत क्रिया-श्रा चार नांगा . तेमां जे प्रथम पद बे, ते घटतो नथी कारणके एकीसाथे बे उपयोग थवा संजव नश्री. धर्म गतनाव अने अधर्मगत क्रिया ए बीजो नांगो अप ने कारणके शुल नावथी क्रियागत अशुलनाव घारवालु रजोगुणना हेतुनुं जे स्वरूप तेनो क्ष्य थाय . ७५
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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