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________________ ( ७४८) कार स्मरणके प्रभाव से सर्पकी पुष्पमाला होगई. पश्चात् श्रीमती के पतिआदि सब लोग श्रावक होगये. दोनोंके कुलशीलआदि समान होवें तो उत्कृष्ट सुख, धर्म तथा बडप्पनआदि मिलता है. इस विषय में पेथड श्रेष्ठी तथा प्रथमिणी स्त्रीका उदाहरण विद्यमान है. सामुद्रिकादिक शास्त्रों में कहे हुए शरीरके लक्षण तथा जन्मपत्रिकाकी जांच आदि करके वरकन्याकी परीक्षा करना चाहिये कहा है कि, १ कुल, २ शील, ३ सगे सम्बन्धी, ४ विद्या, ५ धन, ६ शरीर, और ७ वय ये सात गुण कन्यादान करनेवालेनें वरमें देखने चाहिये. इसके उपरान्त कन्या अपने भाग्यके आधार पर रहती हैं, जो मूर्ख, निर्धन, दूरदेशान्तरमें रहनेवाला, शूरवीर, मोक्षकी इच्छा करनेवाला, और कन्या से तिगुनी से भी अधिक वय वाला हो, ऐसे वरको कन्या न देना चाहिये. आश्चर्यकारक अपार संपत्तिवाला, अधिक ठंडा, अथवा बहुतही क्रोधी, हाथ, पैर अथवा किसी भी अंगसे अपंग तथा रोगी ऐसे वरको भी कन्या न देनी चाहिये. कुल तथा जाति से हीन, अपने मातापितासे अलग रहनेवाला, और जिसके पूर्वविवाहित स्त्री तथा पुत्रादि होवे ऐसे वरको कन्या न देनी चाहिये. अधिक वैर तथा अपवादवाले, नित्य जितना द्रव्य मिले उस सबको खर्च कर देनेवाले, आलस्य से शून्यमनवाले ऐसे वरको कन्या न देनी अपने गोत्रमें उत्पन्न, जूआ, चोरी
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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