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________________ (७४६ ) गायें चरानेका धन्धा करता था. एक समय राजसभामें उसने 'स्वस्ति' ऐसा कहनेके स्थान में 'उशरट' ऐसा कहा, इससे उसका बडा तिरस्कार हुआ. पश्चात् देवताको प्रसन्न करके वह महान् पंडित तथा कवि हुआ. ग्रन्थ सुधारनेमें, चित्रसभादर्शनादिककृत्योंमें जो कलावान होवे; वह परदेशी होने पर भी वसुदेवादिककी भांति सत्कार पाता है. कहा है कि--पंडिताई और राजापना ये दोनों समान नहीं है. कारण कि, राजा केवल अपने देशहीमें पूजा जाता है, और पंडित सर्वत्र पूजा जाता है. सर्व कलाएं सीखना चाहिये. कारण कि, देशकालआदिके अनुसार सर्वकलाओंका विशेष उपयोग होना सम्भव है. ऐसा न करनेसे कभी २ मनुष्य गिरी दशामें आ जाता है. कहा है कि -सट्टपट्ट भी सीखना, कारण कि, सीखा हुआ निष्फल नहीं जाता. सट्टपट्टके प्रसादहीसे गोल (गुड) और तुंबडा खाया जाता है. सब कलाएं आती हों तो पूर्वोक्त आजीविकाके सात उपायों के एकाध उपायसे सुखपूर्वक निर्वाह होता है तथा समय पर समृद्धिआदि भी मिलती है. सर्वकलाओंका अभ्यास करनेकी शक्ति न होवे तो, श्रावकपुत्रने जिससे इस लोकमें सुखपूर्वक निर्वाह होवे और परलोकमें शुभगति होवे ऐसी किसी एककलाका तो सम्यक्प्रकारसे अभ्यास अवश्य करना चाहिये. कहा है कि श्रुतरूप समुद्र अपार है, आयुष्य थोडा
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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