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________________ (७४१) पाषाणमय स्तंभ, पीठ, पाटिये, बारसाख इत्यादि वस्तुएं गृहस्थको हानि कारक हैं, परन्तु वे धर्मस्थानमें शुभ हैं. पाषाणमय वस्तु ऊपर काष्ठ और काष्ठमय वातुके ऊपर पाषाणके स्तंभ आदि घर अथवा जिनमंदिरमें कभी न रखना. हलका काष्ठ, घाणी, शकट ( गाडा ) आदि वस्तुएं तथा रहेंट आदि यंत्र ये, सब कांटेवाले वृक्ष, बडआदि पांच ऊंबर तथा जिनमें से दुध निकलता हो ऐसे आकआदिकी लकडी काममें न लेना. और बीजोरी, केल, अनार, नींबू, दोनों जातिकी हलदी, इमली, बबूल, बोर, धतूरा इनके काष्ठ भी निरुपयोगी हैं, जो ऊपरोक्त वृक्षकी जडें पडौससे घरकी भूमिमें घुसें, अथवा इन वृक्षोंकी छाया घरके ऊपर आवे तो उस घरधनीके कुलका नाश होता है.. घर पूर्वभागमें ऊंचा होवे तो धनका नाश होता है, दक्षिणभागमें ऊंचा होवे तो धनकी समृद्धि होती है, पश्चिमभागमें ऊंचा हो तो वृद्धि होती है और उत्तरदिशामें ऊंचा होवे तो शून्य होजाता है. गोलाकार, अधिककोणयुक्त अथवा एक, दो या तीन कोणवाला, दाहिनी तथा बाईं ओर लंबा ऐसा घर रहनेके योग्य नहीं. जो किमाड अपने आपही बंद होजावें अथवा खुल जावें वे अच्छे नहीं हैं। घरके मुख्य द्वारमें चित्रमयकलशादिककी विशेष शोभा उत्तम कही जाती है. जिन चित्रोंमें योगिनीके नृत्यका आरम्भ, महाभारत रामायणमेंका अथवा दूसरे राजाओंका संग्राम, ऋषि अथवा देवके चरित्र होवें वे चित्र घरमें उत्तम
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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