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________________ (६९२) शाक्त करना. अब इस विषय पर दृष्टान्त कहते हैं किः-- विजयपुर नगरमें विजयसेन नामक राजा था. उसके बहुतसे पुत्र थे. उनमें से विजयश्रीरानीका पुत्र राज्य सम्हालनेके योग्य हुआ, यह जानकर राजाने उसका सन्मानादि करना छोड दिया. ऐसा करने में राजाका यह अभिप्राय था कि, "दूसरे पुत्र डाहवश इसका वध न कर डालें." पर इससे राजकुमारको बहुत दुःख हुआ, वह मनमें सोचने लगा कि, "पगसे कुचली हुई धूल भी कुचलनेवालेके मस्तक पर चढती है. अतएव गूंगेमुंहसे अपमान सहन करनेवाले मनुष्यसे तो धूल श्रेष्ठ है. ऐसा नीतिशास्त्रका वचन है, इसलिये मुझे यहां रहकर क्या करना है ? मैं अब परदेश जाऊंगा. कहा है कि, "जो मनुष्य घरमेंसे बाहर निकलकर सैकड़ों आश्चर्यसे भरे हुए सम्पूर्ण पृथ्वीमंडलको देखता नहीं, वह कूपमंडूकके समान है. पृथ्वीमंडलमें भ्रमण करनेवाले पुरुष देश देश की भाषाएं जानते हैं, देश देशके विचित्र रीति रिवाज जानते हैं और नानाप्रकारके आचर्यकारी चमत्कार देखते हैं." यह विचारकर राजकुमार चुपचाप रात्रिके समय हाथमें खड्ग ले बाहर निकला, और स्वच्छन्दता पूर्वक पृथ्वीमें भ्रमण करने लगा. एक समय वनमें फिरता हुआ मध्याह्नके समय क्षुधातृषासे बहुत दुःखित होगया. इतनेहामें सर्वांगमें दिव्य आभूषण पहिरे हुए एक दिव्य पुरुष आया. उसने स्नेह पूर्वक बातचीत करके कुमारको एक सबप्रकारके
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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