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________________ ( ६९१ ) करना. देशावकाशिक व्रतमें भूमि खोदना, जल लाना, वस्त्र धोना, नहाना, पीना, अग्नि सुलगाना, दीपक करना, पवन करना (पंखी से हवा करना), लीलोतरी छेदना, वयोवृद्ध पुरुषोंके साथ अधिक बोलना (विवाद करना), अदत्तादान, तथा स्त्रीने पुरुषके साथ तथा पुरुषने स्त्रीके साथ बैठना, सोना, बोलना, देखना आदिका व्यवहारमें परिमाण रखना. दिशाका परिमाण रखना, तथा भोगोपभोगका भी परिमाण रखना, इसी प्रकार सर्व अनर्थदंडों का संक्षेप करना, सामायिक, पौषध तथा अतिथिसंविभागनें भी जो छूट रखी हो उसमें प्रतिदिन संक्षेप करना. खांडना, दलना, रांधना, जीमना, खोदना, वस्त्रादि रंगना, कांतना, पींजना, लोढना, घर आदि पुताना, लीपना, झटकना, वाहन पर चढना, लीख आदि देखना, जूते पहिरना, खेत नींदना, काटना, चुनना, रांधना, दलना इत्यादि कार्यों में प्रतिदिन यथाशक्ति संबर रखना पढना, जिनमंदिरमें दर्शन करना, व्याख्यान सुनना, गुणना, इतने सब कार्यों में तथा जिनमंदिर के सर्वकार्यों में उद्यम करना तथा वर्ष के अन्दर धर्मके हेतु अष्टमी, चतुर्दशी, विशेषतपस्या और कल्याणकतिथिमें उजमणेका महोत्सव करना धर्मके हेतु मुह. पत्ति, पानीके छनने (गलने ) तथा औषध आदि देना. यथाशक्ति साधर्मिक वात्सल्य करना, और गुरुविनय करना. प्रति मास सामायिक व प्रतिवर्ष पौषध तथा अतिथिसंविभाग यथा
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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