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________________ ( ४६) भगवान के शासन में इस विमलाद्री तीर्थकी अद्भुत महिमा प्रकट हुई । सब तीर्थों में यही विमलाद्री तीर्थ मुख्य श्रेष्ठ है । पृथकर कारणोंसे इस तीर्थके बहुतसे नाम हैं, यथाः-१ सिद्धि क्षेत्र, २ तीर्थराज, ३ मरुदेव, ४ भगीरथ, ५ विमलाचल, ६ बाहुबली ७ सहस्रकमल, ८ तालध्वज, ९ कदंब, १० शतपत्र, ११ नगाधिराज, १२ अष्टोत्तरशतकूट, १३ सहस्रपत्र, १४ ढंक, १५ लौहित्य, १६ कपर्दिनिवास, १७ सिद्धिशेखर, १८ पुंडरीक, १९ मुक्तिनिलय, २० सिद्धिपर्वत तथा २१ शत्रुजय । ऐसे इस तीर्थके इक्कीस नाम देवता, मनुष्य तथा ऋषियोंने कहे हैं । वही वर्तमान समयमें भव्य प्राणी कहते हैं । उपरोक्त ये नाम इसी अवसर्पिणीमें जानो। जिनमेंसे कितने ही नाम तो पूर्वकाल में होगये हैं और कितने ही भविष्कालमें होनेवाले हैं, इनमें प्रत्यक्ष अर्थवाला 'शत्रुजय' यह नाम आते भवमें तू ही निर्माण करेगा, यह हमने ज्ञानियों के मुंहसे सुना है । इसके अतिरिक्त श्री सुधर्मास्वामी रचित श्रीशत्रुजयमहाकल्प में इस तीर्थके १०८ नाम कहे हैं, यथाः-१ विमलाद्रि. २ सुरशैल, ३ सिद्धिक्षेत्र, ४ महाचल, ५ शत्रुजय; ६ पुंडरीक, ७ पुण्यराशी, ८ श्रीपद, ९ सुभद्र, १० पर्वतेंद्र, ११ दृढशक्ति, १२ अकर्मक, १३ महापद्म, १४ पुष्पदंत, १५ शाश्वत, १६ सर्वकामप्रद, १७ मुक्तिगृह, १८ महातीर्थ, १९ पृथ्वीपीठ, २० प्रभुपद, २१ पातालमूल, २२ कैलास, २३ क्षितिमंडलमंडन इत्यादि
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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