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________________ (६५०) स्थान कहां है ? उसे बराबर जानना चाहिये, जल समीप है कि नहीं? सो तलाश करना, तथा द्वार बराबर बंद करना, इष्टदेवको नमस्कार करके अपमृत्युका भय दूर करना, पवित्र होना, तत्पश्चात् यथारीति वस्त्र पहिर कर रक्षामंत्रसे पवित्र की हुई चौडी शय्यामें सर्व आहारका परित्याग करके बाई करवटसे सो रहना। क्रोधसे, भयसे, शोकसे, मद्यपानसे, स्त्रीसंभोगसे, बोझा उठानेसे, वाहन में बैठनेसे तथा मार्ग चलनेसे ग्लानि पाया हुआ, अतिसार, श्वास, हिचकी, शूल, क्षत (घाव) अजीर्ण आदि रोगसे पीडित, वृद्ध, बाल, दुर्बल, क्षीण और तृषातुर आदि पुरुषोंने कभी दिनमें भी सो रहना चाहिये । ग्रीष्मऋतुमें वायुका संचय, हवामें रूक्षता तथा छोटी रात्रि होती है, इस लिये उस ऋतुमें दिनमें निद्रा लेना हितकारी है। परंतु शेष पुरुषोके शेष ऋतुमें दिनमें निद्रा लेनेसे कफ, पित्त होनेसे निद्रा लेनी योग्य नहीं होती है । अधिक आसक्तिसे तथा बिना अवसर निद्रा लेना अच्छा नहीं। कारण कि वह निद्रा कालरात्रिकी भांति सुख तथा आयुष्यका नाश करती है । सोते समय पूर्वदिशामें मस्तक करे तो विद्याका और दक्षिणदिशामें करे तो धनका लाभ होता है, पश्चिमदिशामें मस्तक करे तो चिंता उत्पन्न हो, तथा उत्तरदिशामें करे तो मृत्यु अथवा हानि होती है। . आगममें कही हुई विधि इस प्रकार है:-शयनके समय
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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