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________________ (६४८) कहते हैं- अब्रह्म याने स्त्रीसंभोगसे विरक्त रहना । तात्पर्यः- यावज्जीव ब्रह्मचर्य (चतुर्थ व्रत ) पालनेमे असमर्थ हो ऐसे युवाश्रावकने भी पर्वतिथिआदि विशेष. दिनोंमें ब्रह्मचर्य ही से रहना चाहिये । कारण कि, ब्रह्मचर्यका फल बहुत ही भारी है। महाभारतमें भी कहा है कि- हे धर्मराज! एक रात्रि तक ब्रह्मचर्य पालन करनेवाले ब्रह्मचारीकी जो शुभगति होती है, वह शुभगति सहस्रों यज्ञ करनेसे भी होती है वा नहीं ? यह कहा नहीं जा सकता। उपस्थित गाथामें "निर्दे" विशेष्य है, और "अप्पं" यह उसका विशेषण है, तथा ऐसा न्याय है कि, “ कोई भी विधि अथवा निषेध का वाक्य विशेषण सहित कहा होवे तो वह विधि अथवा निषेध, अपना संबंध विशेषणके साथ रखता है।" इससे " निद्रा लेना हो तो अल्प लेना" ऐसा यहां कहनेका उद्देश्य है, परंतु " निद्रा लेना" यह कहनेका उद्देश्य नहीं । कारण कि, दर्शनावरणीयकर्मका उदय होनेसे निद्रा आती है। इसलिये निद्रा लेनेकी विधि शास्त्र किसलिये करे ? जो वस्तु अन्य किसी प्रकारसे प्राप्त नहीं होती, उसकी विधि शास्त्र करता है, ऐसा नियम है। इस विषयका प्रथमही एक वार वर्णन किया जा चुका है। विशेष निद्रा लेनेवाला मनुष्य इस भवसे तथा परभवसे भी भ्रष्ट हो जाता है। चोर. बैरी, धूत, दुर्जन आदि लोग भी सहज ही में उसपर हमला करसक्ते हैं ।
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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