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________________ (६४७) चाहिये । इतनेपर भी यदि वे प्रतिबोध न पावे तो फिर गृहस्वामीके सिरपर दोष नहीं। कहा है कि.. न भवति धर्मः श्रोतुः सर्वस्यैकान्तते हितश्रवणात् । ब्रुवतोऽनुग्रहनुध्ध्या वक्तुरुचेकान्ततो भवति ॥ १॥ सभी श्रोताजनोंको हितवचन सुननेसे धर्मप्राप्ति होती है, ऐसा नियम नहीं, परंतु भव्यजीवोंपर अनुग्रह करनेकी इच्छासे धर्मोपदेश करनेवालेको तो अवश्य ही धर्मप्राप्ति होती है। . (मूल गाथा ) . . पायं अबंभविरओ, समए अप्पं करेइ तो निदं ।। निद्दोवरमे थीतणु असुइत्ताई विचिंतिजा ॥ १० ॥ संक्षेपार्थः- तत्पश्चात् सुश्रावक विशेष करके अब्रह्म ( स्त्रीसंभोग ) से विरक्त रहकर अवसरमें अल्प निद्रा ले, और निद्रा उडजावे तब मनमें स्त्रीके शरीरके अशुचिपने आदि का चिन्तवन करे। विस्तारार्थ:--सुश्रावक स्वजनोंको धर्मोपदेश करनेके अनंतर एक प्रहर रात्रि बीत जानेके बाद और मध्यरात्रि होनेके पहिले अपनी शरीरप्रकृतिके अनुकूलसमयपर शय्यास्थानमें जाकर शास्त्रोक्त विधि प्रमाणे अल्प निद्रा लेवे। निद्रा लेनको. जाते समय श्रावकनें कैसा रहना चाहिये ? वह
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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