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________________ (६४२) इन नौको आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार संज्ञाओंसे गुणा करते ३६ हुए. उनको चक्षु, स्पर्श, श्रोत्र, रस, और घ्राण इन पांच इन्द्रियोंसे गुणा करते १८० एकसौ अस्सी हुए. उनको पृथिवीकाय, अप्काय, तेउकाय वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चौरेंद्रिय, पंचेंद्रिय और अजीवकाय इन दस भेदके साथ गुणा करते १८०० अट्ठारहसौ हुए. उनको १ शान्ति, २ मार्दव, ३ आर्जव, ४ मुक्ति (निर्लोभता), ५ तप, ६ संयम, ७ सत्य, ८ शौच,(पवित्रता), ९ अकिंचनता (परिग्रहत्याग) और १० ब्रह्मचर्य ( चतुर्थव्रत ) इन दश प्रकारके साधुधर्मसे गुणा करते १८००० अट्ठारह हजार होते हैं. इस प्रकार शीलांग रथके १८००० अंगोंकी उत्पत्ति जानो. शीलांगरथका भावना पाठ इस प्रकार है:-- में नो करति मणसा, निजिअआहारसन्नसोइंदी ॥ पुढविक्कायारंभ, खंतिजुआ ते मुणी वंदे ॥१॥ इत्यादि, इसका विशेष स्वरूप यंत्र परसे जानना. साधुधर्मरथका पाठ इस प्रकार है:-- १ आहारआदि संज्ञा और श्रोत्रआदि इंद्रियोंको जीतनेवाले जो मुनि पृथ्वीकायआदिका आरम्भ मनसे भी नहीं करते, उन क्षांतिआदि दशविध धर्मके पालनेवाले मुनियोंको मैं वदना करता हूं.
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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