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________________ (६४१) ( सेवा ) करे. विश्रामणा यह उपलक्षण है, इसलिये सुखसंयमयात्राकी पृच्छाआदि भी करे, पूर्वभवमें पांचसौ साधुओंकी सेवा करनेसे चक्रवर्तीकी अपेक्षा अधिक बलवान हुए बाहुबलिआदिके दृष्टान्तसे सेवाका फल विचारना. उत्सर्गमार्गसे देखते साधुओंने किसीसे भी सेवा न कराना चाहिये. कारण कि, " संवाहणा दंतपहोअणा अ" यह आगमवचनसे निषेध किया है. अपवादमार्गसे साधुओंको सेवा करानी हो तो साधुहीसे कराना चाहिये. तथा कारणवश साधुके अभावमें योग्य श्रावकसे कराना चाहिये, यदि महान् मुनिराज सेवा नहीं कराते, तथापि मनके परिणाम शुद्ध रख सेवाके बदले उन मुनिराजको खमासमण देनेसे भी निर्जराका लाभ होता है, और विनय भी ऐसा करनेसे किया जाता है. तत्पश्चात् पूर्व में पढे हुए 'दिनकृत्य आदि श्रावककी विधि दिखानेवाले ग्रन्थोंकी अथवा उपदेशमाला, कर्मग्रंथआदि ग्रन्थोंका पुनरावर्तनरूप,शीलांगआदि रथकी गाथा गिननेरूप अथवा नवकारकी वलयाकारआवृत्ति आदि स्वाध्याय अपनी बुद्धिके अनुसार मनकी एकाग्रताके निमित्त करना. शीलांग रथ इस गाथाके अनुसार हैकरणे ३ जोए ३ सन्ना ४, इंदिअ५ भूमाइ १० समणधम्मो अ१०॥ सीलंगसंहस्साणं अट्ठारसगस्स निष्फत्ती ॥१॥ ___अर्थः--करण, करावण, अनुमोदन ये तीन करण, इन तीनोंको मन, वचन, और कायाके तीन योगसे गुणा करते नौ हुए.
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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