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________________ करनेवाला, और ५ अकारण रसोई करनेवाला, ये पांचों मनुष्य महान् पातकी हैं. इसलिये मुझे पुनः निद्रा आजाये इस हेतुसे ताजा घृतके मिश्रण युक्त शीतल जलसे मेरे पैरके तलुवे मसल." कुमारके ये वचन सुनकर राक्षसनें मनमें विचार किया कि, " इस पुरुषका चरित्र जगत्से कुछ पृथकही दिखाई दे रहा है ! इसके चरित्रसे इन्द्रका भी हृदय थरथर कांपे, तो फिर अन्य साधारणजीवोंकी बातही कौनसी ? बडे आश्चर्यकी बात है कि, यह मेरे द्वारा अपने पैरके तलुवे मसलवानेका विचार करता है ! यह बात सिंह पर सवारी करके जानेके समान है. इसमें शक नहीं कि इसकी निडरता कुछ अद्भुतही प्रकारकी है ! इसका कैसा बडा साहस ? कैसा भारी पराक्रम ? कैसी ढीठता ? और कैसी निडरता ? विशेष विचार करनेमें क्या लाभ है ? सम्पूर्ण जगत्में शिरोमणिके सदृश सत्पुरुष आज मेरा अतिथि हुआ है, अतएव एक बार मैं इसके कहे अनुसार करूं.' ऐसा चिन्तवन करके राक्षसने घृतयुक्त शीतल जलके द्वाग अपने कोमलहाथोंसे कुमारके पगके तलुवे मसले. किसी समय भी देखने, सुनने अथवा कल्पना तक करनेमें जो बात नहीं आती वही पुण्यशाली पुरुषोंको सहजमें मिल जाती है. पुण्यकी लीला कुछ पृथकही है ! " राक्षस सेवककी भांति अपने पगके तलुवे मसल रहा है " यह देख कुमारने शाघ्र उठकर प्रीतिसे कहा कि, " हे राक्षसराज ! तू महान् सहनशील है,
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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