SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 615
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५९२) MA सुभटोंने उक्त तापसका मुंडन करा, गधे पर चढाया तथा अन्य भी बहुतसी विडंबनाएं करके प्राणघातक शूली पर चढा दिया. अरेरे! पूर्वभव में किये हुए बुरे कर्मोका कैसा भयंकर परीणाम होता है? तापस स्वभावसे शान्त था तथापि उस समय उसे बहुत क्रोध आया, जल स्वभावसें शीतल है तो भी तपानेसे वह बहुत उष्ण हो ही जाता है. वह तापस तत्काल मृत्युको प्राप्त होकर राक्षसयोनिमें गया. मृत्युके समय रौद्रध्यानमें रहनेवाले लोगोंको व्यंतर ही की गति प्राप्त होती है. हीनयोनीमें उत्पन्न हुए उस दुष्टराक्षसने रोषसे क्षणमात्रसे अकेले राजाको मार डाला. अरेरे! बिना विचारे कार्य करनेसे कैसा बुरा परिणाम होता है ? तत्पश्चात् उसने नगरवासी सर्वलोगोंको निकाल बाहर किया. राजाके अबिचारीकृत्यसे प्रजा भी पीड़ित है. वही राक्षस अभी भी जो कोई नगरके अन्दर प्रवेश करता है, उसको क्षणमात्रमें मार डालता है. इसलिये हे वीरपुरुष ! तेरे हितकी इच्छासे मैं यमके मुख सदृश इस नगरीमें प्रवेश करते तुझे रोकती हूं. ___मैनाका ऐसा हितकारी वचन सुन कर व उसकी वाक्पटुतासे कुमारको आश्चर्य हुआ, परन्तु राक्षससे वह लेशमात्रभी न डरा, विवेकीपुरुषने कोई कार्य करते समय उत्सुक, कायर तथा आलसी न होना चाहिये. इस पर भी कुमार उस नगरमें प्रवेश करनेको बहुत उत्सुक हुआ. व राक्षसका पराक्रम देखनेके कौतुकसे संग्रामभूमिमें उतरनेकी भांति शीघ्र नगरीमें घुसा । आगे जाकर
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy