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________________ (५९१) जान लेनेके हेतु गुप्तरीतिसे राजाने उसका पीछा किया. उस धूर्त चोरने किसी प्रकार शीघ्र राजाको पहिचान लिया. दैवकी अनुकूलतासे क्या नहीं हो सकता ? उस शठ चोरने क्षण मात्रमें राजाकी दृष्टि चुका कर एक मठमें प्रवेश किया. उस मठमें कुमुद नामक एक तपस्वी रहता था. वह गादनिद्रामें सो रहा था. वह शठ चोर अपने जीवको भाररूप चोरीका माल वहां छोड कहीं भाग गया. राजा इधर उधर उसकी खोज करता हुआ मठमें घुसा, वहां चोरीके माल सहित तापसको देखा. राजाने क्रोधसे कहा-दुष्ट और चोर, हे दंडचर्मधारी तापस! चोरी करके अब तू कपटसे सो रहा है ! झुठी निंद्रा लेनेवाले ! मैं अभी तुझे दीर्घनिद्रा (मृत्यु ) देता हूं." राजाके वज्रसमान कठोर वचनोंसे तापस भयभीत हुआ व घबराकर जागृत हुआ था, तो श्री उत्तर न दे सका, निर्दयीराजाने सुभटोद्वारा बंधाकर उसे सवेरे शूली पर चढानेका हुक्म किया. अरेरे! अविचारीकृत्यको धिक्कार है !.! तापसने कहा"हाय हाय हे आर्यपुरुषो ! मैं बिना चोरी किये ही सोध न करनेके कारण मारा जाता हूं" यद्यपि तापसका यह कथन सत्य था तथापि उस समय विशेष धिक्कारका पात्र हुआ. जब दैवं प्रतिकूल होता है तब कौन अनुकूल रहे? देखो! राहु चंद्रमाको अकेला देख कर उसका ग्रास करता है, तब कोई भी उसकी सहायता नहीं करता. पश्चात् विकराल यमदूतोंके समान उन
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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