SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 601
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५७८) उसे प्रसन्न करता रहा. उसकी स्त्री कमलाके मन में कुछ संशय उत्पन्न हुआ, इससे उसने सचेत रहकर एक समय अपने पतिको हंसिनीके साथ चतुराईसे भरे हुए मधुर वचन बोलते हुए स्पष्टतया देखा. जिससे उसको डाह व मत्सर उत्पन्न हुआ. इसमें आश्चर्य ही क्या ? स्त्रियोंकी प्रकृति ऐसी ही होती है. अन्तमें उसने अपनी सखीतुल्य विद्याके द्वारा हंसिनीका संपूर्ण वृत्तान्त ज्ञात किया, और हृदयमें बिंधे हुए शल्यकी भांति उसे पांजरेमेंसे निकाल बाहर कर दी. यद्यपि कमलाने उसे सौतियाडाहसे निकाल दी, किन्तु भाग्ययोगसे हंसिनीको वहीं अनुकूल हुआ. नरकसमान विद्याधरराजाके बंधनसे छूटते ही वह शबरसेनावनकी ओर अग्रसर हुई. "विद्याधर पीछा करेगा" इस भयसे बहुत घबराती हुई धनुष्यसे छूटे हुए बाणकी भांति वेगसे गमन करनेके कारण वह थक गई, और अपने भाग्योदयसे विश्राम लेने के लिये यहां उतरी और तुझे देखकर तेरी गोदमें आ छिपी. हे कुमारराज! मैं ही उक्त हंसिनी हूं, और जिसने मेरा पीछा किया था व जिसको तूने जीता वही वह विद्याधरराजा है।" तिलकमंजरी यह वृत्तान्त सुन, बहिनके दुःखसे दुःखी हो बहुत विलाप करने लगी। स्त्रियोंकी रीति ऐसी ही होती है। पश्चात् वह बोली- " हाय हाय ! हे स्वामिनी ! भयकी मानो राजधानीके समान अटवी में तू अकेली किस प्रकार रही ? दैव
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy