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________________ (५७७) करता है ? स्नेहका स्थान देखे बिना हठ पकडने वाले मतिमन्दमनुष्योंको धिक्कार है !" वह अंकुश रहित विद्याधरराजा अशोकमंजरीके ये वचन सुन कर अत्यन्त क्रोधित हुआ. और शीघ्र म्यानमेंसे खड्ग बाहर निकाल कर कहने लगा कि- "अरेरे! मैं अभी हा तेरा वध करूंगा! मेरी निंदा करती है !!" अशोकमंजरी बोली"अनिष्टमनुष्यके साथ सम्बन्ध करने की अपेक्षा मृत्यु मुझे पसंद है. जो तेरी इच्छा मुझे छोडनेकी न होवे तो तू अन्य कोई भी विचार न करते शीघ्र मेरा वध कर." पश्चात् अशोकमंजरीके पुण्योदयसे उसके मनमें विचार उत्पन्न हुआ कि, "हाय हाय ! धिक्कार है !! मैंने यह क्या दुष्ट कार्य सोचा ? अपना जीवन जिसके हाथमें होनेसे जो जीवनकी स्वामिनी कहलाती है, उस प्रियस्त्रीके लिये कौन पुरुष क्रोधवश ऐसा घातकीपन आचरण करता है ? सामोपचार ही से सर्व जगह प्रेम उत्पन्न होना संभव है. उसमें भी स्त्रियों पर यह नियम विशेष करके लगता है, पांचालनामकनीतिशास्त्रके कोने भी कहा है कि-"स्त्रियोंके साथ बहुतही सरलतासे काम लेना चाहिये." कृपणोंका सरदार जैसे अपना धन भंडारमें रखता है, वैसेही विद्याधरराजाने उपरोक्त विचार करके मन में उल्लास लाकर अपना खड्ग शीघ्र म्यानमें रख लिया और नईसृष्टिकर्ताके समान हो कामकरीविद्यासे अशोकमंजरीको मनुष्यभाषा बोलने वाली हंसिनी बनाई. और माणिक्यरत्नमय मजबूत पीजरेमें उसे रखकर पूर्वानुसार
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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