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________________ ( ५२८) दो प्रकारका है, जिसमें देशव्यापी जो संतोष है उससे गृहस्थपुरुषोंको सुख होता है. परिग्रहपरिमाणवत अंगीकार करनेसे गृहस्थ पुरुषोंको देशव्यापी संतोष बढ़ता है। कारण कि, परिग्रहपरिमाण करनेसे अपार आशा मर्यादामें आजाती है. सर्वव्यापीसंतोषकी वृद्धि तो मुनिराज ही से की जा सकती है इससे अनुत्तरविमानवासी देवताओंसे भी श्रेष्ठ सुखकी इसीलोकमें प्राप्ति होता है। भगवतीसूत्रमे कहा है कि-एकमास पर्यत दीक्षापर्याय पालनेवाले साधु ग्रहण किये हुए चारित्रके विशुद्धपरिणामसे वाणमंतरकी, दोमास तक पालनेवाले भवनपतिकी, तीनमास तक पालनेवाले असुरकुमारकी, चार मास तक पालन करनेवाले ज्योतिषीकी, पांचमास तक पालनेवाले चन्द्रसूर्यकी, छः मास तक पालन करनेवाले सौधर्म तथा ईशान देवताकी, सातमास तक पालनेवाले सनत्कुमारवासी देवताकी, आठमास तक पालनेवाले ब्रह्मवासी तथा लांतकवासी देवताकी, नवमास तक पालनेवाले शुक्रवासी तथा सहस्रारवासी देवताकी, दशमास तक पालनेवाले आनत आदि चार देवलोकमें रहने वाले देवताकी, ग्यारहमास तक पालनेवाले ग्रेवैयकवासी देवताकी, तथा बारहमास तक पालनेवाले अनुत्तरोपपातिकदेवताकी तेजोलेश्या ( मनमें उत्पन्न हुई सुखकी प्राप्ति ) का उल्लंघन करते हैं। जो मनुष्य संतोषी नहीं, उसको बहुतसे चक्रवर्ती राज्योंसे,
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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