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________________ (५२७) सामग्री बडे पुण्यसे प्राप्त होती है. १ अनादर, २ विलम्ब, ३ पराङ्मुखता, ४ कटुवचन और ५ पश्चाताप ये पांचों शुद्धदानको भी दूषित करते हैं, १ भौं ऊंची चढ़ाना, २ दृष्टि ऊंची करना, ३ अंतवृत्ति रखना, ४ पराङ्मुख होना, ५ मौन करना और ६ कालविलम्ब करना यह छः प्रकारकी नाही ( इन्कारअसम्मति ) कहलाती है. १ आंख में आनंदाश्रु, २ पुलकित ( रोमांचित ) होना, ३ बहुमान, ४ प्रियवचन और ५ अनुमोदना ये पांचों पात्रदानके भूषण हैं. सुपात्रदान और परिग्रहपरिमाणव्रतके पालन ऊपर रत्नसारकुमारकी कथा इस प्रकार है: एक महान् संपत्तिशाली रत्नविशालानामक नगरी थी. उसमें यथानाम गुणधारी समरसिंह नामक राजा राज्य करता था. उसी नगरीमें दरिद्रीमनुष्योंके दुःखोंका हरण करनेवाला वसुसार नामक एक धनाढ्य व्यापारी रहता था. उसकी स्त्रीका नाम वसुंधरा था तथा उनके रत्नसमान उत्कृष्ट गुणवान रत्नसार नामक एक पुत्र था. एक समय वह अपने मित्रोंके साथ वनमें गया.विचक्षणबुद्धि रत्नसारने वहां विनयंधर आचार्यको देख उनको वन्दना करके पूछा कि- "हे महाराज ! इस लोकमें भी सुखकी प्राप्ति किस प्रकार हो सकती है ?" उन्होंने उत्तर दिया . "हे दक्ष ! संतोषकी वृद्धि रखनेसे इस लोकमें भी जीव सुखी होता है, अन्य किसीप्रकारसे नहीं. संतोष देशव्यापी तथा सर्वव्यापी
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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