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________________ (५१९) होगया । तरुण होगया तथापि उसे कन्या न मिली । तब लज्जित होकर वह धनोपार्जन करने गया । भूमिमें गडा हुआ धन निकालनेके उपाय, किमिया, सिद्धरस, मंत्र, जलकी तथा स्थलकी मुसाफिरी, भांति भांतिके व्यापार, राजादिककी सेवा इत्यादि अनेक उपाय किये तो भी उसे धन प्राप्ति न हुई जिससे अतिशय उद्विग्न हो उसने गजपुरनगरमें केवली भगवान्को अपना पूर्व भव पूछा । उन्होंने कहा “ विजयपुर नगरमें एक अत्यन्त कृपण गंगदत्त नामक गृहपति रहता था। वह बडा मत्सरी था तथा किसीको दान मिलता होता अथवा किसीको लाभ होता तो उसमें भी अंतराय करता था। एकसमय सुन्दर नामक श्रावक उसे मुनिराजके पास लेगया । उसने कुछ भावसे तथा कुछ दाक्षिण्यतासे प्रतिदिन चैत्यवंदन पूजाआदि धर्मकृत्य करना स्वीकार किया। कृपण होनेके कारण पूजाआदि करनेमें वह आलस्य करता था, परन्तु चैत्यवंदन करनेके अभिग्रहका उसने बराबर पालन किया। उस पुण्यसे हे धनमित्र ! तू धनवान् वणिक्का पुत्र हुआ और हमको मिला । तथा पूर्वभवमें किये हुए पापसे महादरिद्री और दुःखी हुआ। जिस २ रीतिसे कर्म किये जाते हैं, वही उनकी अपेक्षा सहस्रगुणा भोगना पडता है, यह विचार कर उचितआचरणसे रहना चाहिये । केवलीके ऐसे वचनोंसे प्रतिबोध पाये हुए धनमित्रने
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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