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________________ (५१८) जागृत होना, ५ स्वामि पर भक्ति रखना और ६ शूरवीर रहना. ये छः शिक्षाएं कुत्तेसे लेना. १ उठाया हुवा बोझा लेजाना, २ शीत तथा तापकी परवाह न रखना, और ३ सदा संतुष्ट रहना, ये तीन शिक्षाएं गधेके पाससे लेना." इत्यादि. नीतिशास्त्र आदिमें कहे हुए समस्त उचितआचरणोंका सुश्रावकने सम्यक् रीतिसे विचार करना. कहा है कि-जो मनुष्य हित अहित, उचित अनुचित, वस्तु अवस्तुको स्वयं जान नहीं सकता वह मानो बिना सींगके पशुरूपसे संसाररुपी वनमें भटकता है. जो मनुष्य बोलने में, देखनेमें, हंसनेमें, खेलने में, प्रेरणा करनेमें, रहने में, परीक्षा करने में, व्यवहार करनेमें, शोभनेमें, धनोपार्जन करनेमें, दान देनेमें, हालचाल करनेमें, पढ़नेमें, हर्षित होनेमें और वृद्धि पाने में कुछ नहीं समझता, वह निर्लजशिरोमणि संसारमें किसलिये जीवित रहता होगा ? जो मनुष्य अपने और दूसरेके स्थानमें बैठना, सोना, भोगना, पहिरना, बोलना आदि यथारीतिसे जानता है, वह श्रेष्ठ विद्वान है. अस्तु. व्यवहार-शुद्धि आदि तीनोंशुद्धिसे धनोपार्जन करने पर इस प्रकार दृष्टान्त है: विनयपुर नगरमें धनवान ऐसा वसुभद्राका “धनमित्र" नामक पुत्र था । वह बाल्यावस्थामें मातापिताकी मृत्यु हो जानेसे अत्यन्त दुःखी तथा धनहानि होनेसे अत्यन्त दरिद्री
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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