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________________ ( ४९८ ) भांति कुसंपसे राजाकी भेट लेने अथवा विनती करने अ. दिके लिये न जाना चाहिये । कहा है कि बहूनामप्यसाराणां समुदायो जयावहः । तृणैरावेष्टिता रज्जुर्यया नागोऽपि बध्यते ॥ १ ॥ चाहे जैसी असार वस्तु होवे तो जो बहुतसी एकत्र होजावे तो विजयी होजाती है देखो, तृणसमूह से बनी हुई रस्सी हाथीको भी बांध रखती है. गुप्त सलाह प्रकट करने से कार्य भंग होजाता है तथा समय पर राजाका कोप आदि भी होता है; इसलिये गुप्त सलाह कदापि प्रकट न करना चाहिये । परस्पर चुगली करनेसे राजादि अपमान तथा समय पर दंड आदि भी कर देते हैं, तथा समव्यवसायी लोगोंका कुसंपसे रहना नाशका कारण है. कहा है कि- एक पेटवाले और भिन्न २ फलकी इच्छा करनेवाले भारंड पक्षीकी भांति कुसंपमें रहनेवाले लोग नष्ट होजाते हैं. जो लोग एक दूसरे के मर्म की रक्षा नहीं करते वे सर्पकी भांति मरणान्त कष्ट पाते हैं. ।। ३७ ।। समुट्ठिए विवाए, तुलासमाणेहिं चेव ठायव्वं ॥ कारण साविक्खेरि, विहुणेअन्वो न नयमग्गो ॥३८॥ अर्थ :- कोई विवाद आदि उत्पन्न होजावे तो तराजुके समान रहना. स्वजन सम्बन्धी तथा अपनी ज्ञातिके लोगों पर
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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