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________________ (४९५) रहित ही हैं, परन्तु पृथक् २ प्रकृतिके श्रावकोंको अपनी २ प्रकृतिके अनुसार धर्माचार्यमें भी पृथक २ भाव उत्पन्न होता है। स्थानांगसूत्र में कहा है कि, हे गौतम ! श्रावक चार प्रकारके हैं. एक मातापिता समान, दूसरे भाईसमान, तीसरे मित्रसमान, चौथे सौतसमान." इत्यादि इस ग्रंथमें पहिले कहे जा चुके हैं. प्रत्यनीकलोगोंका उपद्रव दूर करनेके विषय में कहा है कि. साहूण चेइआप य, पडिणीअं तह अवनवायं च । जिणपवयणस्स आहिअं, सव्वत्थामेण वारेइ ॥१॥ साधुओंका, जिनमंदिरका तथा विशेषकर जिनशासनका कोई विरोधी होवे, अथवा कोई अवर्णवाद बोलता हो तो सर्वशक्तिसे उसका प्रतिवाद करना. " इस विषय पर भागीरथ नामक सगरचक्रवर्तीके पौत्रके जीव कुंभारने प्रान्तग्राम निवासी साठ हजार मनुष्योंके किये हुए उपद्रवसे पीडित यात्री संघका उपद्रव दूर किया, वह उत्कृष्ट उदाहरण है. (३१) स्खलिअंमि चोइओ गुरुजणेण मन्नइ तहत्ति सव्वंपि ॥ चोएइ गुरुजणंपिहु, पमायखलिएसु एगंते ॥ ३२ ॥ __अर्थ:-पुरुषने अपना कुछ अपराध होने पर धर्माचार्य शिक्षा दे, तब " आपका कथन योग्य है" ऐसा कह सर्व मान्य करना. कदाचित् धर्माचार्यका कोई दोष दृष्टिमें आवे तो
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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