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________________ (४६९) वित्ता सवालंकारविभूसिकरित्ता मणुन्नं थालिपागसुद्धं अट्ठारसवं जणाउलं भोअपं भोआवित्ता जावज्जीवं पिट्ठवंसिआए परिवहिज्जा , तेरणावि तस्स अम्मापिउस्स दुप्पडिआरं भवइ, अहे णं से तं अम्मापिअरं केवलिपन्नत्ते धम्मे आघवइत्ता पन्नवइत्ता परूवत्ता ठावइत्ता भवइ तेणामेव तस्स अम्मापिउस्स सुपडियारं भवइ समणाउसो! १ ॥ कोई पुरुष जीवन पर्यंत प्रातःकालमें अपने मातापिताको शतपाक तथा सहस्रपाकतेलसे अभ्यंगन करे, सुगन्धित उबटन लगावे, गंधोदक, उष्णोदक और शीतोदक इन तीनप्रकारके जलोंसे स्नान करावे, संपूर्ण आभूषणोंसे सुसज्जित करे, पाकशास्त्रकी रीतिसे तैयार किया हुआ अट्ठारह जातिके शाकयुक्त रुचिके अनुसार भोजन करावे, और आजीवन अपने कंधे पर धारण करे तो भी वह मातापिताके उपकारका बदला नहीं दे सकता, परन्तु यदि वह पुरुष अपने मातापिताको केवलिभाषित सुनाकर मनमें बराबर उतार तथा धर्मके मूलभेद और उत्तर भेदकी प्ररूपणा कर उस धर्ममें स्थापन करनेवाला होजाय तभी उसके उपकारका बदला दिया जा सकता है। केइ महच्चे दरिदं समुक्कासिज्जा , तए णं से दरिहे समुक्किटे समाणे पच्छा पुरं च णं विउलभोगसमिइसमण्णागए अवि विहरिज्जा। तएणं स महच्चे अन्नया कयाइ दरिई हूए समाणे तस्स दरिहस्स अंतिअं हवमागच्छिज्जा । तए णं से दरिद्दे तस्स भट्टिस्स सव्वस्समवि दलमःणे तेणावि तस्स दुप्पडियारं भवइ अहे णं से तं भट्टि केवलि
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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