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________________ (४४५) का चूर्ण लेप करनसे मिट जाया करता था' यह सुन श्वसुरको पंडा हर्ष हुआ. उसने तुरन्त मोती मंगानेकी तैयारी की. इतने ही में बहूने यथार्थ बात कह दी. धर्मकृत्यमें खर्च करना यह लक्ष्मीका एक वशीकरण है. कारण कि, इसीसे वह स्थिर होती है. कहा है कि मा मंस्थाः क्षीयते वित्तं, दीयमानं कदाचन । कूपारामगवादीनां, ददतामेव संपदः ॥१॥ देनेसे धनका नाश होता है, ऐसा तू किसी कालमें भी मत समझना. देखो, कुआ, बगीचा,गाय आदि ज्यों ज्यों देते जाते हैं त्यों त्यों उनकी संपदा वृद्धिको प्राप्त होती है. इस विषय पर एक उदाहरण है कि:-- विद्यापति नामक एक श्रेष्ठी बहुत धनवान था. लक्ष्मीने स्वप्नमें आकर उसको कहा कि, 'मैं आजसे दशवें दिन तेरे घरमेंसे निकल जाऊंगी.' पश्चात् विद्यापतिने अपनी स्त्रीके कहनेसे उसी दिन सर्वधन धर्मके सातक्षेत्रों में व्यय कर दिया. और गुरुसे परिग्रहका प्रमाण स्वीकार कर सुखपूर्वक रात्रि सो रहा. प्रातःकाल होते ही देखा कि पुनः पूर्वकी भांति धन परिपूर्ण भरा है, तब उसने पुनः सब द्रव्य धर्मकृत्यमें व्यय कर दिया. इसी प्रकार नौ दिन व्यतीत हुए. दशवें दिन फिर लक्ष्मीने स्वप्नमें आकर कहा कि, 'तेरे पुण्यसे मैं तेरे घर ही में स्थिर रहती हूं.' लक्ष्मीका यह वचन सुनकर विद्यापति श्रेष्ठी
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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