SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 441
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४१८ ) हुई, वह मनुष्य निर्लज्ज हो जाता है, और निर्लज्ज हुआ मनुष्य स्वामी, मित्र और अपने ऊपर विश्वास रखने वालेका घात आदि गुप्त महापाप करता है. यही बात योगशास्त्र में कही है. यथा: एकत्र सत्यजं पापं पापं निःशेषमन्यतः । , द्वयोस्तुलाविधृतयोराद्यमेवातिरिच्यते ॥ १ ॥ " तराजू के एक पलडेमें असत्य रखें, और दूसरी बाजू में सर्व पातक रखें तो दोनोंमें पहिला ही तौल में अधिक उतरेगा. किसीको ठगना इसका असत्यमय गुप्त लघुपापके अन्दर समावेश होता है. इसलिये कदापि किसीको न ठगना चाहिये. न्यायमार्गसे चलना यही द्रव्यकी प्राप्ति कराने. वाला एक गुप्त महामंत्र है. वर्तमानसमय में भी देखते हैं कि न्यायमार्गानुयायी कितने ही लोग थोडा २ धनोपार्जन करते हैं, तोभी वे धर्मकृत्य में नित्य खर्च करते हैं. ऐसा होते हुए भी जैसे कुका जल निकले थोडा, परन्तु कभी भी क्षयको प्राप्त नहीं होता, इसी प्रकार उनका धन भी नष्ट नहीं होता. अन्य पापकर्म करनेवाले लोग बहुत द्रव्योपार्जन करते हैं, तथा विशेष खर्च नहीं करते, तो भी मरुदेशके सरोवरकी भांति वे लोग अल्प समय में निर्धन हो जाते हैं कहा है किआत्मनाशाय नोन्नत्यै, छिद्रेण परिपूर्णता । भूयो भूयो घटीयन्त्रं, निमज्जत् किं न पश्यसि १ ॥ १ ॥
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy