SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४१७ ) तदनन्तर शारदानन्दन गुरु और राजाका मिलाप हुआ, व दोनों जनोंको अपार हर्ष हुआ ।... इत्यादि इस लोक पाप दो प्रकारका है. एक गुप्त और दूसरा प्रकट. गुप्तपाप भी दो प्रकारका है. एक लघुपाप और दूसरा महापाप. खोटे तराजू, बाट इत्यादि रखना यह गुप्त लघुपाप और विश्वासघात आदि करना यह गुप्त महापाप कहलाता है. प्रकटपापके भी दाभेद हैं. एक कुलाचारसे करना और दूसरा लोकलज्जा छोडकर करना. गृहस्थलोग कुलाचारसे आरंभ समारंभ करते हैं तथा म्लेच्छलोग कुलाचार ही से हिंसा आदि करते हैं वह प्रकट लघुपाप है; और साधुका वेष पहिर कर निर्लज्जता से हिंसा आदि करे, वह प्रकट महापाप है. लज्जा छोडकर किये हुए प्रकट महापापसे अनन्तसंसारीपन आदि होता है, कारण कि, प्रकट महापापसे शासनका उड्डाह आदि होता है. कुलाचारसे प्रकट लघुपाप करे तो थोडा कर्मबंध होता है, और जो गुप्त लघुपाप करे तो तीव्र कर्मबंध होता है. कारण कि वैसा पाप करनेवाला मनुष्य असत्य व्यवहार करता है. मन, बचन, कायासे असत्य व्यवहार करना, यह बडा ही भारी पाप कहलाता है; और असत्य व्यवहार करनेवाले मनुष्य गुप्तलघुपाप करते हैं । " असत्यका त्याग करनेवाला मनुष्य किसी समय भी गुप्तपाप करने को प्रवृत्त नहीं होता. जिसकी प्रवृत्ति असत्यकी ओर
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy