SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३९५ ) • माहनी नदी के किनारे एक सूखे हुए वृक्षके नीचे पटक दिया. तब वह बालक प्रथम रुदन कर तथा पश्चात् हंसकर बोला कि, " मैं तुम पर एक लाख स्वर्णमुद्राएं मांगता हूं, वे दो. अन्यथा तुम्हारे ऊपर अनेक अनर्थ आ पडेंगे. " यह सुन भावड श्रेष्ठीने पुत्रका जन्मोत्सव कर छट्ठे दिन एक लाख स्वर्णमुद्राएं बांटी, तब वह बालक मर गया. इसी प्रकार दूसरा पुत्र तीन लाख स्वर्णमुद्राएं देने पर मृत्युको प्राप्त हुआ तीसरा पुत्र होने के अवसर पर स्वप्न तथा शकुन मी उत्तम हुए. पुत्रने उत्पन्न होकर कहा कि " मेरे उन्नीस लाख स्वर्णमुद्राएं लेना है. " यह कह उसने मात्रापसे उन्नीस लाख स्वर्णमुद्राएं धर्मखाते निकलवाई, पश्चात् नवलाख स्वर्णमुद्राएं खर्च कर वह काश्मीरदेशमें श्री ऋषभदेव भगवान, श्रीपुंडरीक गणधर और चक्रेश्वरीदेवी इन तीनकी प्रतिमा ले गया, दस लाख स्वर्णमुद्रा खर्च कर वहां प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई. तदनन्तर उपार्जित किया हुआ अपार स्वर्ण वहाणमें भरकर वह शत्रुंजयको गया. वहां लेप्यमय प्रतिमाएं थीं, उन्हें निकाल कर उनके स्थान पर उसने मम्माणी ( पाषाण रत्न विशेष )की प्रतिमाएं स्थापन करीं इत्यादि. ऋणके सम्बन्ध में प्रायः कलह तथा बैरकी वृद्धिआदि होती है, यह बात प्रसिद्ध है । इसलिये ऋण चाहे किसी उपायसे वर्तमान भव ही में चुका देना चाहिये दूसरे व्यवहार t
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy