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________________ ( ३९४ ) हो शीघ्रता से करना. शरीर में तैल मर्दन करना, ऋण उतारना और कन्या की मृत्यु ये तीन बातें प्रथम दुःख देकर पश्चात् सुख देती है । अपना उदरपोषण करने तकको असमर्थ होनेसे जो ऋण न चुकाया जा सके तो अपनी योग्यता के अनुसार साहुकारकी सेवा करके भी ऋण उतारना. अन्यथा आगामीभवमें साहुकारके यहां सेवक, भैंसा, बैल, ऊंट, गधा, खच्चर, अश्व आदि होना पडता है. साहुकारने भी जो ऋण चुकाने को असमर्थ हो उससे मांगना नहीं. कारण कि उससे व्यर्थ संक्लेश तथा पापवृद्धि मात्र होना संभव है । इसलिये ऐसे निर्धनको साहुकारने कहना कि, " तुझमें देने की शक्ति होवे तब मेरा द्रव्य चुकाना और न होवे तो मेरा इतना द्रव्य धर्मार्थ है ।" देनदारने विशेषकाल तक ऋणका सम्बन्ध सिर पर नहीं रखना, कारण कि उससे कभी आयुष्य पूर्ण हो जाय तो आगामी भवमें पुनः दोनों जनोंका सम्बन्ध हो वैरआदि उत्पन्न होता है । सुनते हैं कि भावडश्रेष्ठीको पूर्वभवके ऋणके सम्बन्ध ही से पुत्र हुए, यथा: भावड नामक एक श्रेष्ठ था. उसकी स्त्रीके गर्भ में एकजीवने अवतार लिया, उस समय दुष्ट स्वप्न आये तथा उसकी स्त्रीको दोहले भी बडे ही बुरे २ उत्पन्न हुए. अन्य भी बहुतसे अपशकुन हुए. समय पूर्ण होने पर श्रेष्टीको मृत्युयोग पर दुष्ट पुत्र हुआ. वह घरमें रखने योग्य नहीं था, इससे उसे
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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