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________________ (३७०) योग्य आवश्यक बात यह है कि, अपने अंगीकार किये हुए धर्मका तथा ग्रहण किये हुए व्रतका निर्वाह होवे. परन्तु किसी स्थानमें किसी भी प्रकारसे उसमें (धर्म व व्रत आदिमें ) लोभसे अथवा भूल आदिसे भी हरकत न आवे, ऐसी रीतिस धनकी चिन्ता करना. कहा है कि- ऐसी कोई भी वस्तु नहीं कि, जो द्रव्यसे प्राप्त न हो सके. इसलिये बुद्धिशाली मनुष्यने सर्व प्रकारके प्रयत्नसे धन संपादन करना। इस स्थान पर 'अर्थचिन्ता करना' ऐसा आगम नहीं कहता. कारण कि, मनुष्यमात्र अनादिकालकी परिग्रहसंज्ञासे अपनी इच्छा ही से अर्थचिन्ता करता है. केवलिभाषित आगम ऐसे सावधव्यापारमें जीवोंकी प्रवृत्ति किस लिये करावे ? अनादिकालकी संज्ञासे सुश्रावकको अर्थचिन्ता करना पडे, तो उसने इस रीतिसे करना चाहिये कि धर्मआदिको बाधा न आवे, इतनी ही आगमकी आज्ञा है. " इहलोइऑमि कज्जे, सवारंभेण जह जणो तणइ । तह जइ लक्खंसेणवि, धम्मे ता किं न पज्जत्तं ॥ १॥" " रोगिणां सुहृदो वैद्याः, प्रभूणां चाटुकारिणः । मुनयो दुःखदग्यानां, गणकाः क्षीणसंपदाम् ॥ १ ॥ पण्यानां गान्धिकं पण्यं, किमन्यैः काञ्चन दिकैः । यत्रैकेन गृहीतं यत् तत्सहस्रेण दीयते ॥ २॥"
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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