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________________ ( ३६९ ) कार्य करें तो उनके काम में धर्मको विरोध नहीं आता है. कहा है कि- केवल राजा ही का हित करनेवाला मनुष्य प्रजाका शत्रु होता है, और केवल प्रजाका हित करनेवाला मनुष्य राजासे त्याग दिया जाता है. इस प्रकार एकके हितमें दूसरेका अहित समाया हुआ होनेसे राजा व प्रजा इन दोनोंका हित करनेवाला अधिकारी दुर्लभ है । वणिक आदि लोगोंने सच्चा व्यवहार रखना चाहिये, जिससे धर्मको विरोध न आवे, (६) || यही बात मूलगाथा में कहते हैं. ( मूल गाथा ) ववहार सुद्विदेसाइविरुद्वच्चायउचिअचरणेहि ॥ तो कुणइ अत्थचिंत, निव्वाहिंतो निअं धम्मं ॥ ७ ॥ भावार्थ: - पूर्वकथित धर्मक्रिया कर लेनेके अनन्तर, अर्थचिन्ता ( धन संपादन करने संबंधी विचार ) करना. उसे करते समय तीन बातोंका अवश्य ध्यान रखना चाहिये. एक तो धनआदि प्राप्त करने के साधन-व्यवहार में निर्दोषता रखना. अर्थात् व्यवहार में मन, वचन और काय इन तीनोंको सरल रखना. कपट न करना, दूसरे जिस देशमें रहना, उस देशके लोकविरुद्ध कृत्य न करना. तीसरे उचित कृत्य अवश्य करना. इन तीनोंका विस्तार पूर्वक विवेचन आगे किया जावेगा उसे ध्यान में रखकर धनकी चिन्ता करना, चौथी ध्यान में रखने
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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