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________________ (३५५) इसी प्रकार कुलत्थ और मास भी जानो. उसमें इतनी ही विशेषता है कि, मास तीन प्रकारका है. एक कालमास ( महीना), दूसरा अर्थमास ( सोने चांदीका तौल विशेष ) और तीसरा धान्यमास ( उड़द ) इस भांति थावच्चापुत्रआचार्यने बोध किया, तब अपने हजार शिष्योंके परिवार सहित शुकपरिव्राजकने दीक्षा ली. थावच्चाचार्य अपने एक हजार शिष्यों सहित शत्रुजय तीर्थमें सिद्धिको प्राप्त हुए । पश्चात् शुकाचार्य शेलकपुरके शेलक नाम राजाको तथा उसके पांचसौ मंत्रियोंको प्रतिबोध कर दीक्षा दे स्वयं सिद्धिको प्राप्त हुए । शेलकमुनि ग्यारह अंगके ज्ञाता हो अपने पांचसौ शिष्योंके साथ विहार करने लगे। इतनेमें नित्य रूखा आहार करनेसे शेलक मुनिराजको खुजली (पामा) पित्त आदि रोग उत्पन्न हुए. पश्चात् विहार करते हुए वे परिवार सहित शेलकपुरमें आये. वहां उनका गृहस्थाश्रमका पुत्र मड्डुक राजा था. उसने उनको अपनी वाहनशालामें रखे. प्रासुक औषध व पथ्यका ठीक योग मिलनेसे शेलक मुनिराज निरोग १ 'कुलत्थ शब्दमागधी है. 'कुलत्थ' (कुलथी) व 'कुलस्थ' इन दो संस्कृतशब्दोंका 'कुलत्थ ऐसा एकही मागधीमें रूप होता है. २ 'मास' (महीना), 'माष' (उडद) और 'माष' (तौलनेका एक बाट ) इन तीनों शब्दोंका मागधीमें 'मास' ऐसा एकही रूप होता है,
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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