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________________ ( ३५४ ) शुकपरित्राजक:- 'हे भगवान् ! सेरिसवय भक्ष्य है कि अभक्ष्य है ?? थावच्चापुत्रः - 'हे शुकपरिब्राजक ! सरिसवय भक्ष्य है, तथा अभक्ष्य भी है, वह इस प्रकार है:- सरिसवय दोप्रकारके हैं. एक मित्र सरिसवय ( समान उमरका ) और दुसरा धान्य सरिसवय ( सर्पप, सरसों) मित्र सरिसवय तीनप्रकारके हैं. एक साथमें उत्पन्न हुआ, दूसरा साथमें बढा हुआ, और तीसरा बाल्यावस्था में साथ में धूल में खेला हुआ. ये तीनों प्रकारके मित्र सरिसवय साधुओंको अभक्ष्य है. धान्य सरिसवय दोप्रकारके हैं. एक शस्त्रसे परिणमित और दूसरे शस्त्रसे अपरिणमित शस्त्र - परिणमित सरिसवय दो प्रकारके हैं. एक प्रासुक व दूसरे अप्रासुक. प्रासुक सरिसवय भी दो प्रकारके हैं. एक जात और दूसरे अजात. जात सरिसवय भी दो प्रकारके हैं, एक एषणीय और दूसरे अनेषणीय. एषणीय सरसवय भी दो प्रकारके हैं. लब्ध और अलब्ध. धान्य सरिसवय में अशस्त्र परिणमित, अप्रासुक अजात, अनेपणीय व अलब्ध इतने प्रकारके अभक्ष्य हैं, तथा शेष सर्व प्रकार के धान्य सरिसवय साधुओं को भक्ष्य हैं. १ 'सरिसवय' यह मागधीशब्द है. 'सदृशवय' व 'सर्पप' इन दो संस्कृतशब्दोंका मागधी में 'सरिसवय' ऐसा रूप होता है. सदृशवय याने समान उमरका और सर्षप याने सरसों .
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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