SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३३९ ) जादि कृत्य करें तो उस समय सबके समक्ष अपना २ जितना भाग हो. वह कह देना चाहिये । ऐसा न करनेसे पुण्यका नाश तथा चोरीआदि दोष सिर पर आता है। इसी प्रकार माता, पिताआदिकी आयुष्यका अंतिम समय आवे, उस समय जो उनके पुण्यके निमित्त द्रव्य खर्च करना हो तो मरनेवाली व्यक्तिके सुद्धिमें होते हुए गुरु तथा साधर्मिक आदि लोगों के समक्ष कहना कि " तुम्हारे पुण्यके निमित्त इतने दिनमें मैं इतना द्रव्य खर्च करूंगा, उसे तुम अनुमोदना दो । " ऐसा कह, कही अवधि में उक्त द्रव्य सर्व लोग जाने ऐसी रीति से व्यय करना । अपने नामसे उस द्रव्यका व्यय करनेसे पुण्यके स्थान में चोरी आदि करने का दोष आता है । पुण्यस्थान में चोरीआदि करने से मुनिराजको भी हीनता आती है । कहा है कि--- जो मनुष्य (साधु) तप, व्रत, रूप, आचार और भाव इनकी चोरी करता है, वह किल्बिषी देवताकी आयुष्य बांधता है । मुख्यवृत्तिसे विवेकी पुरुषने धर्मखाते निकाला हुआ द्रव्य साधारण रखना, वैसा करने से धर्मस्थान बराबर देखकर उस स्थान - में उस द्रव्यका व्यय किया जा सकता है । सातों क्षेत्रमें जो क्षेत्र गिरा हुआ होवे, उसे आश्रय देने में विशेष लाभ दृष्टि आता है । कोई श्रावक ही बुरी दशा में हो, और उसे जो उस द्रव्य से सहायता की जावे, तो आलम्बन मिलने से वह श्रावक धनवान हो सातों क्षेत्रोंकी वृद्धि करे, यह संभव है । लौकिकमें 1 भी कहा है कि:
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy