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________________ ( २८८) ही से बन सकती है. इस धर्मदत्तने पूर्वभवसे आई हुई धर्मरुचिमे तथा भक्तिसे अपनी एकही मासकी उमरमें कल नियम ग्रहण किया. कल जिनदर्शन तथा वन्दना कर लिया था इसलिये इसने दूधआदि पिया. आज यद्यपि यह क्षुधा, तृषासे पीडित हुआ तथापि दर्शन व वन्दनका योग न मिलनसे इसने मन दृढ रख कर दूध न पिया. मेरे वचनसे इसका अभिग्रह पूर्ण हुआ तब इसने धपानादि किया. पूर्वभवमें जो शुभाशुभ कर्म किया हो, अथवा करनेका विचार किया हो, वह सर्व परभवमें उसीके अनुसार मिल जाता है. इस महिमावन्त पुरुषको पूर्वभवमें करी हुई जिनेश्वरभगवानकी अप्रकट भक्तिसे भी चित्तको चमत्कार उत्पन्न करनेवाली परिपूर्ण समृद्धि मिलेगी. मालीकी चारों कन्याओंके जीव स्वर्गसे च्यवकर पृथक् २ बडे २ राजकुलों में उत्पन्न होकर इसकी रानियां होवेंगी। साथमें सुकृत करने वालोंका योग भी साथ ही रहता है।" मुनिराजकी यह बात सुन तथा बालकके नियमकी बात प्रत्यक्ष देख राजा आदि लोगोंने नियम सहित धर्म अंगीकार किया. "पुत्रको प्रतिबोध करनेके लिये जाता हूं." यह कह वे मुनिराज गरुडकी भांति वैताठ्यपर्वतको उडगये. " जगत्को आश्चर्य कारक अपनी रूपसंपत्तिसे कामदेवको भी लज्जित करनेवाला जातिस्मरण पाया हुआ धर्मदत्त, ग्रहण किये हुए नियमको मुनिराजकी भांति पालता हुआ क्रमशः बढने लगा.
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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