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________________ (२८७) भक्ति आई हुई है इसीसे स्वप्नादि उत्तम आये। कल इसे जिनमंदिर लेगये, तब बार बार जिन-प्रतिमाको देखनेसे तथा हंसके आगमनकी बात सुननेसे इसे मूछी आई और तत्काल जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ, जिससे पूर्वभवका सम्पूर्ण कृत्य इसे स्मरण हो आया. तब इसने आने मन ही से ऐसा नियम लिया कि "जिनेश्वर भगवानका दर्शन और वन्दना किये बिना मैं यावज्जीव मुखमें कुछ भी नहीं डालूंगा." नियम रहित धर्मकी अपेक्षा नियम सहित धर्मका अनन्तगुणा अधिक फल है, कहा है कि- नियम सहित और नियम रहित ऐसा दो प्रकारका धर्म है, जिसमें प्रथम धर्म थोडा उपार्जन किया हो तो भी निश्चयसे दुसरेकी अपेक्षा अनंतगुणा फल देता है, और दूसरा धर्म बहुत उपार्जन किया हो, तो भी परिमित व अनिश्चित फल देता है. कुछ भी ठराव किये बिना किसीको बहुत समय तक व बहुतसा द्रव्य कर्ज दिया होवे, तो उससे किंचिन मात्र भी ब्याज उत्पन्न नहीं होता, और जो कर्ज देते समय ठेराव किया हो तो उस द्रव्यकी प्रतिदिन वृद्धि होती जाती है. ऐसे ही धर्मके विषयमें भी नियम करनेसे विशेष फल वृद्धि होती है। तत्वज्ञानी पुरुष होवे, तो भी अविरतिका उदय होने पर श्रेणिक राजाकी भांति उससे नियम नहीं लिया जा सकता और अविरतिका उदय न होवे तो लिया जाता है. तथापि कठिन समय आने पर दृढता रखकर नियम भंग न करना, यह बात तो आसन्नसिद्धि जीव
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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