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________________ (२६८) (द्रव्यस्तवका सुननेवाला इन तीनोंको अगणित पुण्यानुबंधिपुण्यका लाभ होता है। कुएका दृष्टान्त इस प्रकार है।-एक नये गांवमें लोगोंने कुआ खोदना शुरू किया, तब उनको तृषा, थकावट, कीचडसे मलिनता आदि हुआ। परन्तु जब कुएमें से जल निकला, तब केवल उन्हींकी तृषादिक तथा शरीर और वस्त्र आदि वस्तु पर चढा हुआ मेल दूर हुआ, इतना ही नहीं, बल्कि अन्य सर्वलोगोंका भी तृषादिक और मल दूर होगया, और नित्यक लिये सर्व प्रकार सुख होगया । ऐसाही द्रव्यस्तवकी बातमें भी जानो । आवश्यकनियुक्तिमें कहा है कि-सर्वविराति न पाये हुए देशविरति जीवोंको संसारको कम करने वाला यह द्रव्यस्तव कुएके दृष्टान्तानुसार उत्तम है । अन्य स्थान पर भी कहा है कि- आरंभमें लिपटे हुए, षटकायजीवोंकी विराधनासे विरति न पाये हुए और इसीसे संसार वनमें पड़े हुए जीवोंको द्रव्यस्तव ही एक बडा भारी अवलम्बन है। स्थेयो वायुचलेन निवृतिकरं निर्वाणनितिना. स्वायत्तं बहुपायकेन सुबहु स्वल्पेन सारं परम् । निस्सारेण धनेन पुण्यममलं कृत्वा जिनाभ्यर्चनं । यो गृह्णाति वणिक् स एव निपुणो वाणिज्यकर्मण्यलम् । २ ॥ यास्याम्दायतनं जिनस्य लभते ध्यायश्चतुर्थ फलं, षष्ठं चोस्थित उद्यतोऽष्टममथो गंतुं प्रवृत्तोऽध्वनि ।
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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