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________________ (२६१) जिनको विधि पूर्वक धर्मक्रिया करनेका परिणाम हरदम होता है वे पुरुष तथा विधिपक्षकी आराधना करनेवाले, विधिपक्षका सत्कार करने वाले और विधिपक्षको दोष न देनेवाले पुरुष भी धन्य हैं । आसन्नसिद्धिजीवों ही को विधिसे धर्मानुष्ठान करनेका सदाय परिणाम होता है। तथा अभव्य और दुरभव्य होवे उसको तो विधिका त्याग और अविधिकी सेवा करनेका ही परिणाम होता है। खेती, व्यापार, सेवा आदि तथा भोजन, शयन, बैठना, आना, जाना बोलना इत्यादि क्रिया भी द्रव्य, क्षेत्र, काल आदि विधिसे करी होवे तो फलदायक होती है अन्यथा अल्प फलवाली होती है । इस बात पर दृष्टांत सुनते हैं कि- दो मनुष्योंने द्रव्यके निमित्त देशांतरको जा एक सिद्धपुरुषकी बहुत सेवा की। जिससे प्रसन्न हो उस सिद्धपुरुषने उनको अद्भुत प्रभावशाली तुम्बी-फलके बीज दिये। उनकी सर्व आम्नाय भी कही । यथा-- सो बार जाते हुए खेतमें धूप न होबे तथा अमुक वार नक्षत्रका योग होवे, तब ये बीज बो देना । बेल हो तो कुछ बीज लेकर पत्र, पुष्प, फल सहित बेलडीको उसी खेतमें जला देना। उसकी भस्म एक माषा भर ले चौसठ माषा भर तांबेमें डाल देना उससे जात्य ( सो टचका ) सोना हो जाता है। ऐसी सिद्धपुरुषकी शिक्षा लेकर वे दोनों व्यक्ति घर आई। उनमेंसे एकको तो बराबर विधिके अनुसार क्रिया करनेसे जात्य सुवर्ण होगया,
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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