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________________ (२६०) वान्का समवसरण हुआ। भिल्लके पूछनेसे भगवानका कहा हुआ "या सा सा सा का" सम्बन्ध सुन कर मृगावती रानी तथा चंडप्रद्योतकी अंगारवती आदि आठ पत्नियोंने दीक्षा ली । इस प्रकार विधि अविधिके ऊपर दृष्टांत कहा । इसके ऊपरसे " अविधिसे करनेकी अपेक्षा न करना उत्तम है " ऐसे विरुद्धपक्षकी कल्पना न करना। कहा है कि "अविहिकया वरमकयं, असूयवयणं भणति समयन्न । पायच्छित्तं अकए, गुरुअं वितहं कए लहु ।। ४॥" अविधिसे करना, उसकी अपेक्षा न करना यही ठीक है, यह वचन गुणको भी दोष कहने वाला है ऐसा सिद्धांत ज्ञाता आचार्य कहते हैं। कारण कि, न करनेसे बहुत प्रायश्चित्त लगता है, और अविधिसे करनेमें थोडा लगता है, इसलिये धर्मानुष्ठान नित्य करना ही चाहिये । पर उसमें पूर्णशक्तिसे विधी सम्हालनेकी यतना रखना यही श्रद्धावन्त जीवोंका लक्षण है । कहा है कि-श्रद्धावंत और शक्तिमान् पुरुष विधि ही से सर्व धर्म क्रियाएं करता है, और कदाचित् द्रव्यादि दोष लगे तो भी वह "विधि ही से करना" ऐसा विधि ही के विषयमें पक्षपात रखता है। धन्नाणं विहिजोगो, विहि पक्खाराहगा सया धन्ना । विहिबहुमाणी पन्ना, विहिपक्खअदूसगा धन्ना ॥ १ ॥ आसन्नसिद्धिआणं, विहिपरिणामो उ होई सयकालं । विहिचाओ अविहिभत्ती, अभवजिअदूरभव्वाणं ॥ २ ॥
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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