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________________ (१८९) विच्छिन्ने दूरमोगाढे, नासन्ने विल्वञ्जिए। तसपाणबीअरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे ॥ २ ॥" मुत्तानिगेहे चक्खू , वच्चनिरोहे अ जीवियं चयइ । उड्डनिरोहे कुटुं, गेलन्नं वा भवे तिसुवि ॥ ३॥" लघुनीति (मूत्र) रोकनेसे नेत्र पीडा होती है, और बडी नीति (मल) रोके तो प्राणहानि है, ऊलवायु (डकार) रोके तो कुष्ठरोग होता है, अथवा तीनोंके रोकनेसे उन्माद (पागलपन) होता है। बडीनीति, लघुनीति, सलेखम (नाकमें का मल) आदिका त्याग करनेसे पहिले "अणुजाणह जस्सुग्गहो" ऐसा कहना, तथा त्याग करनेके अनन्तर तुरत " वोसिरे " ऐसा तीन बार मनमें चिन्तवन करना। सलेखम इत्यादिको धूलसे ढांकनेकी भी यतना करना,न करनेसे उसमें असंख्यों संमूच्छिम मनुष्यकी उत्पत्ति होती है तथा उनकी विराधना आदि दोष लगता है। श्रीपन्नवणासूत्रके प्रथमपदमें कहा है कि प्रश्न-हे भगवंत! संमूच्छिम मनुष्य किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? उत्तर--हे गौतम ! पिसतालीश लाख योजन वाले मनुष्यक्षेत्रमें अढाई द्वीप समुद्र के अंदर, पंद्रह कर्मभूमिमें तथा छप्पन अंतर्वीपमें, गर्भज मनुष्यकी विष्ठा, मूत्र , बलखा, नासिकाका मल, वमन, पित्त, वीर्य, पुरुषवीयमें मिश्रित स्त्रीवीर्य ( रक्त ), बाहर निकाले हुए पुरुष वायके पुद्गल, जीव रहित कलेवर, स्त्री.
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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