SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५३) निगल जावे, तो नियमभंग होनेसे नर्कगतिका कारण होता है । "आज तपस्याका दिन है कि नहीं ? अथवा यह वस्तु लेना है कि नहीं ? " ऐसा मनम सशय आवे, और वह (वस्तु। ले तो नियमभंगादि दोष लगता है । बहुतही रोगी, भूतपिशाचादिकका उपद्रव होनेसे विवशता तथा सर्पदंशादिकसे मूर्छित होनेसे तप न होसके तो भी चौथे आगार (सव्वसमाहिवत्तियागारेणं) का उच्चारण किया है अतः नियमका भंग नहीं होता। इस भांति सर्वनियमोंका विचार करना चाहिये । कहा है कि * वयभंगे गुरुदोसो थोवस्सवि पालणा गुणकरी अ । गुरुलाघवं च नेअं, धम्ममि अओ अ आगाग ॥ १॥" नियमभंग होनेसे बडा दोष लगता है इसलिये थोडा ही नियम लेकर उसका यथोचित पालन करना उत्तम है । धर्मके सम्बन्धमें तारतम्य अवश्य जानना चाहिये । इसीलिये (पच्चखानमें) आगार रखे हैं। ____ यद्यपि कमल श्रेष्ठिने "पडौसमें रहनेवाले कुम्हारके सिरकी टाल (गंज) देखे बिना मैं भोजन नहीं करूंगा." ऐसा नियम कौतुकवश लिया था तथापि उससे उसे अर्ध निधानकी प्राप्ति हुई, और उसीसे नियम सफल हुआ। तो पुण्यके निमित्त जो नियम लिया जावे उसका कितना फल होवे ? कहा है किपुण्यके इच्छुक व्यक्तिने कुछ भी नियम अवश्य ग्रहण करना चाहिये, वह (नियम ) अल्पमात्र हो तोभी कमलश्रेष्ठिकी भांति बहुत
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy