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________________ (१५२) सहसानाभोगादि चार आगार हैं, वे ध्यानमें रखना । इसलिये अनुपयोगसे अथवा सह सागारादिकसे नियममें रखी हुई वस्तु नियमसे आधिक लेने में आवे तो भी नियम भंग नहीं होता, परन्तु मात्र अतिचार होता है । समझ बूझकर यदि लेशमात्र भी नियमसे अधिक ग्रहण करे तो नियमभंग होता है। कोई समय पापकर्मवश जानते हुए नियमभंग होजाय तो भी धर्मार्थी जीवोंने आगेपर तो उस नियमका पालन अवश्य करना चाहिये । पडवा, पंचमी, और चौदश इत्यादि पर्वतिथिको जिसने उपवास करनेका नियम लिया है, उसको किसी समय तपस्याकी तिथिके दिन अन्यतिथिकी भ्रांति आदि होनेसे, जो सचित्त जलपान, ताम्बूलभक्षण, स्वल्प भोजन आदि होजाय और पश्चात् तपस्याका दिन ज्ञात हो तो मुखमें ग्रास हो उसे न निगलते निकालकर प्रासुकजलसे मुखशुद्धि करना और तपस्याकी रीत्यानुसार रहना। जो कदाचित् भ्रांतिवश तपस्याके दिन पूरा २ भोजन कर लिया जाय तो दंडके निमित्त दूसरेदिन तपस्या करना और समाप्तिके अवसरपर वह तप वर्द्धमान जितने दिन कम होगये हों, उतनेकी वृद्धि करके करना । ऐसा करनेसे अतिचार मात्र लगता है परन्तु नियम भंग नहीं होता। ''आज तपस्याका दिन है," यह जान लेनेपर यदि एक दानाभी १ अन्नत्थणाभोगेणं २ सहसागारेणं ३ महत्तरागारेणं ४ सव्वसमाहिवात्तयागारणं ।
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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