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________________ ४६ भाषारहस्यप्रकरणे स्त. १. गा. १० ● पराघातप्रज्ञापनम् 'दव्वेहिं णिसिद्धेहिं तप्पा ओग्गाण किर पराघाओ। वीसेढीए इक्को, मीसो य समाइ सेढीए । ।१० ।। निसृष्टैः = ताल्वादिप्रयत्नपूर्वमुच्चरितैः द्रव्यैस्तत्प्रायोग्यानां = वासनायोग्यानां द्रव्याणाम्, किलेति सत्ये, पराघातो नाम वासना भवति । स च विश्रेण्यां एकः = निसृष्टद्रव्यकरम्बितो भवति, निसृष्टानां भाषाद्रव्याणां सूक्ष्मतयाऽनुश्रेण्येव गमनात् । "जीवसूक्ष्मपुद्गलयोरनुश्रेणि गतिः" इति वचनात् । समायां = भाषकदिगपेक्षया प्रध्वरायां श्रेण्यां मिश्रः = निसृष्टद्रव्यकरम्बितो भवति। तथा चोक्तं निर्युक्तिकृता - "भासासमसेढीओ सद्दं ज सुणइ मिसयं सुणइ । वीसेढी पुण सद्दं सुणेइ नियमा पराघाए" (आव. नि. श्लो. ६) इति । "भाषासमसेढीओ" इति । अत्र च " भाष्यत इति भाषा वक्त्रा शब्दतयोत्सृज्यमाना द्रव्यसंहतिरित्यर्थः । तस्याः समाः प्राञ्जलाः श्रेणय आकाशप्रदेशपङ्क्तयो भाषासमश्रेणयः; समग्रहणं विश्रेणिव्यवच्छेदार्थं भाषासमश्रेणिषु इतो गतः स्थित इत्यनर्थान्तरं भाषासमश्रेणीतः । इदमुक्तं भवति भाषकस्य अन्यस्य वा भेर्यादेः समश्रेणिव्यवस्थितः श्रोता यं शब्द पुरुषाश्वभेर्यादिसम्बन्धिनं ध्वनिं श्रुणोति तं मिश्रकं श्रुणोतीत्यवगन्तव्यम् । भाषकादुत्सृष्टशब्दद्रव्याणि तद्वासितापान्तरालस्थद्रव्याणि चेत्येवं मिश्रं शब्दद्रव्यराशिं श्रुणोति न तु वासकमेव, वास्यमेव वा केवलमित्यर्थः । 'विसेढी पुणेत्यादि 'मञ्चाः क्रोशन्ति' इतिन्यायाद् विश्रेणिव्यवस्थितः श्रोताऽपि विश्रेणिरुच्यते । स विश्रेणिः पुनः श्रोता शब्द नियमाद् = नियमेन पराघाते = वासनायां सत्यां श्रुणोति । इदमुक्तं भवति यानि भाषकोत्सृष्टानि शब्दद्रव्याणि भेर्यादिशब्दद्रव्याणि वा तैः पराघाते वासनाविशेषे सति यानि वासितानि समुत्पन्नशब्दपरिणामानि द्रव्याणि तान्येव विश्रेणिस्थः श्रुणोति, न तु भाषकाद्युत्सृष्टानि तेषामनुश्रेणिगामित्वेन विदिग्गमनासम्भवात्" इत्येवं श्रीहेमसूरिभिर्व्याख्यातं विशेषावश्यकभाष्यवृत्तौ । १० । । है?" शिष्य की इस जिज्ञासा का प्रकरणकार १०वीं गाथा से शमन करते हैं। गाथार्थ :- निसृष्ट भाषाद्रव्यों से भाषाप्रायोग्य अन्यद्रव्यों में संस्कार = पराघात होता है। यह संस्कार = पराधातविश्रेणि में एक = संपूर्ण होता है और समश्रेणि में मिश्र होता है | १० | * पराघात द्रव्यभाषा * विवरणार्थ :- पूर्व में तालुकंठादि स्थानों में प्रयत्न कर के छोडे हुए भाषाद्रव्यों से संस्कार के योग्य भाषाद्रव्यों में संस्कार पैदा होता है। अर्थात् वक्ता से उच्चरित शब्द संस्कारयोग्य भाषाद्रव्यों को अपने समानरूप से वासित करते हैं। जिन भाषाद्रव्यों में संस्कार होता है, इनके दो प्रकार होते हैं। समश्रेणि में यानी वक्ता के मुख की सीधी दिशा में रहे हुए और विश्रेणि में यानी वक्ता मुख की अपेक्षा टेढी दिशा में रहे हुए। "जीव और सूक्ष्म पुद्गल की गति आकाशप्रदेश की पंक्तियों के अनुसार होती है" इस शास्त्रवचन के बल पर भाषाद्रव्यों की गति भी आकाशप्रदेशपंक्तियों के अनुसार ही होती है यह सिद्ध होता है, क्योंकि भाषाद्रव्य • सूक्ष्म पुद्गलद्रव्य है। अतः वक्ता जब शब्दोच्चारण करेगा तब वे शब्द वक्ता के मुँह से पूर्व - पश्चिम-उत्तर-दक्षिण- ऊर्ध्व और अधो दिशा, इन छ दिशाओं में आकाशप्रदेश की श्रेणि के अनुसार गतिमान होंगे और अपने मार्ग में रहे हुए भाषायोग्य अन्य द्रव्यों को भी वासित करते जायेंगे = शब्दसंस्कार को उत्पन्न करते जायेंगे । अतः वक्ता के मुँह से सीधी छ दिशाओं में वक्ता से बोले गये शब्द और उनसे वासित हुए अन्य शब्द दोनों रहेगे। मतलब यह हुआ कि वक्ता के मुख से सीधी छ दिशाओं में जो पराधात = शब्दसंस्कार होगा वह वक्ता से बोले गये शब्दों से मिश्र होगा। जब कि वक्ता के मुँह की विदिशा में = विश्रेणि रहे हुए भाषायोग्य पुद्गलो में जो संस्कार = पराघात होगा वह वक्ता से उच्चरित शब्द से = भाषाद्रव्यों से मिश्र नहीं होगा, क्योंकि भाषाद्रव्य सूक्ष्म होने से आकाशप्रदेश की पंक्तियों के अनुसार ही गति करता है। आकाशप्रदेशों की श्रेणि सरल-सीधी ही होता है, टेढी नहीं। अतः वक्ता से उच्चरित भाषाद्रव्यों का विदिशा में गमन असंभवित होने से वक्ता के मुँह की विदिशा में सिर्फ वासित भाषाद्रव्यों की ही १ द्रव्यैर्निसृष्टैस्तत्प्रयोग्याणां किल पराघातः । विश्रेण्यामेको मिश्रश्च समायां श्रेण्याम् ||१० । । २ मुद्रितप्रतौ तु 'तप्पाओगाण' एवं पाठो वर्तते । स चाशुद्धः । ३ भाषासमश्रेणीतः शब्दं यच्छृणोति मिश्रकं श्रुणोति । विश्रेणिः पुनः शब्दं श्रृणोति नियमात् पराघाते ।।
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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