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________________ श्रद्धाञ्जलि चतुःशताधिक न्यायादिशास्त्रहस्यविद् यह मत पूछो हमने कितना जिया ? गुरुकृपापात्र मोक्षरत्नविजयजी महाराज ! पूछो तो यही, जीवन कैसा जिया ? परमश्रद्धेय संयमकलक्षी दीक्षादानेश्वरी शासनप्रभावक आचार्यदेव श्रीमद् विजय गुणरत्नसूरीश्वरजी महाराजा को अपना पूरा जीवन समर्पित करके, उनके पावन शिष्यत्व एवं महनीय मुनित्व से आप अलंकृत बने। __आपके पवित्र मुखारविन्द में निर्दोष संयमचर्या का प्रतापी तेज, गुलाबी गालों पर सदा बहती हुई साहजिक निखालस मुस्कान, होठों पे सात्त्विक सच्चाई का सुंदर स्रोत, मर्मज्ञ मस्तिष्क में समुद्र सा गहरा एवं हिमालय सा उन्नत सम्यग्ज्ञान, सदा गुरुसमर्पित हृदयकमल में विनय-विवेकवैराग्य-विशालता-विश्वसनीयता आदि प्रतिष्ठित थे। न केवल आप सम्यग्ज्ञान के महासागर थे या परम त्याग की जीवंत मूर्ति या तपश्चर्या मार्ग के अप्रमत्त मुसाफिर मगर सहृदयतासौजन्यता-सरलता-समर्पितता-साहसिकता सहनशीलता-सौम्यता-सहायकतादिवंगत मुनिश्री मोक्षरत्नविजयजी महाराजा सहानुभूति-सहास्तित्व-सत्यपक्षपातित्व(उम्र - २९) स्याद्वादित्व-साहजिकस्वस्थता-सूर-संगीतसौन्दर्य के सुविशाल स्रोतवाली सदा सानंद स्वच्छ स्तुत्य सदागतिशील सुन्दर सरिता भी सचमुच आप ही थे, जिसने अनेक भव्यात्माओं की तत्त्वजिज्ञासा की प्यास बुझाई, शंका-विपर्ययादि पङ्क को दूर किया, आलस्य आदि थकावट को हटा दी, ग्रन्थसंशोधनादि बीजली का सृजन किया एवं दार्शनिक तत्त्वों का अध्यापन आदि द्वारा प्रकाश किया । शासन की तात्त्विक उच्चतम सेवा-संरक्षा-सानुबन्धसमुन्नति के लिये आपके कितने मधुर मनोरथ थे। ___मगर 'अत्यन्तमतिमेधावी त्रयाणामेकमश्नुते । अल्पायुर्वा दरिद्रो वा ह्यनपत्यो न संशयः ।। १ ।।' इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए काल के अविरत बहते हुए भीषण प्रवाह ने बीच में ही आपके पार्थिव देह को अकाल कवलित करके सभी के हृदय को द्रवित-व्यथित एवं खिन्न कर दिया। आपकी चैतन्यमय ऊर्जादायी मूक प्रेरणा से सर्जित यह कृति आपके पुनित पाणिपद्म में साश्रु नयन एवं गद्गद हृदय से समर्पित करता हूँ। शिशु यशोविजय नहीं जानते कुछ कि जाना कहाँ है ? चले जा रहे हैं मगर जानेवाले ।। मौत इक रोज़ जब आनी है तो डरना क्या है ? हम सदा खेल ही समझा किए मरना क्या है ? मौत उसीकी है करे जिसका जमाना अफसोस । यूँ तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए ||
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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